बच बच के इस गली से

अब हम गुजरते हैं

हवाएं रुख बदलती हैं

दिल हम थाम लेते हैं

 

इधर पलटी की उधर

बस ये देखते हैं हम

ख़ामोशी और शिकवों से

सुबह और शाम लिखते हैं

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