tag:blogger.com,1999:blog-77248603287998531092024-03-05T02:38:46.537-08:00दिल की बातें, सीधे सेकुछ किस्से, कुछ हादसे और ढेर सारी जिंदगी
Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.comBlogger718125tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-10380142899198877722023-05-22T13:18:00.003-07:002023-05-22T13:18:22.943-07:00 वट सावित्री <p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">वट सावित्री </span></p><span id="docs-internal-guid-8ff42e17-7fff-2daf-343c-68bd5eeb1bbb"><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-alternates: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">वैसे तो सावित्री और सत्यवान की कहानी सबको पता ही है , लेकिन किरण सोच रही थी की आजकल जब प्राण की रक्षा के लिए डॉक्टर हॉस्पिटल और साइंस है , क्यों करती है औरतें एक पेड़ के नीचे प्रार्थना. </span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-alternates: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></p><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-alternates: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">ऊपर से अमेरिका में तो इतनी गर्मी भी नहीं पड़ती इन दिनों में, की पति को पंखा झूला के कुछ ठंढक देना कोई काम की चीज़ हो. और उपवास में सज धज कर दस और औरतों के साथ , क्यों? मेमोरी के पन्ने पलटे तो देखा, भी </span><span style="font-family: Arial; font-size: 14.6667px; white-space: pre-wrap;">मैं</span><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;"> उनमे से एक थी तो जवाब तो उसके पास भी होना चाहिए, तो उनमे से कुछ ऐसे कह डाले किरण ने </span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-alternates: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">१. मैंने अपनी माँ को देखा था, तो बस उन संस्कारो को जीवित रखना था. आखिर एक दिन हम औरते अपनी माँ जैसी ही तो बन जाती है? नहीं? </span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-alternates: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">२. हम औरते प्यार तो बहुत करती है लेकिन जब शब्दों की बात हो , कंजूसी कर जाती है. ऐसे में वटसावित्री और करवा चौथ जैसे मौके बहाने बन जाते है. एक दिन , सारा दिन मैं सिर्फ तुम्हारे लम्बी उम्र और स्वस्थ्य की कामना करुँगी, समय निकाल कर सवारूंगी श्रृंगार करुँगी , की तुम्हारी आँखों में वो प्रेम और कौतुहल देखूं जो शादी के मंडप पर देखा था। </span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-alternates: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">३. और ऐसे में मैं मेरी उन सखी सहेलियों को अपने संग कैसे न बांध लू? जिस प्रेम की डोरी में मैंने तुमको तुम्हारे परिवार और समाज सब को बांध रखा है, वोही नाजुक डोरी मेरी बहने भी तो थामे बैठी है. तो फिर ? </span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-alternates: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">सभी को वटसावित्री की शुभकामनाये। </span></p><div><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-alternates: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div></span>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-41526625601025059972023-05-22T13:16:00.003-07:002023-05-22T13:16:59.411-07:00प्रेम है <p> कभी रूह से और कभी देह से तुम </p><p>बुला लेना और बता देना की प्रेम है </p><p>कभी रूठकर और कभी बहल कर </p><p>सता लेना और हंसा देना की प्रेम है </p><p>कभी पास रहकर कभी दूर जा कर </p><p>दिखा देना और देख लेना की प्रेम है </p><p>हूँ जिन्दा की मुर्दा कौन कहे देखकर </p><p>बस जान लेना की सांस है तो प्रेम है </p><p> </p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-4696054576236869642022-01-22T12:29:00.000-08:002022-01-22T12:29:23.449-08:00<p> मुझे माफ़ ही कीजिये </p><p>क्युकी </p><p>इधर मुहब्बत हुयी </p><p>और उधर दिल टूटा </p><p><br /></p><p>जो डरते रहे हम </p><p>डराते रहे वो </p><p>हारते रहे हम </p><p>हराते रहे वो </p><p><br /></p><p>न पिघलता आग में </p><p>तो सोना निखरता कैसे?</p><p>न चोट पड़ती अनगिनत </p><p>तो हीरा दमकता कैसे </p><p>न उम्र भर को टंगता </p><p>यूं ही कहीं आस्मां में </p><p>तो अँधेरी रात में रोशन </p><p>भला चाँद, चमकता कैसे </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>तुमने ही छूकर अब अनछुआ किया है </p><p>तो अब देखकर भी अनदेखा करेंगे </p><p><br /></p><p>हर बात में भी जब कई सी बाते हो </p><p>होकर भी न हुयी जो मुलाकाते हो </p><p>भींगी हैं इश्क़ में मेरी गीली साँसे भी </p><p>हर सलवटों में अब तेरी ही रातें हो </p><p><br /></p><p><br /></p><p>अब हथेली भर को मुझे चाहत दे दो </p><p>उम्र भर </p><p>मुझे जाने की इज़ाज़त दे दो </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>मुहब्बत उनसे न हुयी </p><p>खुद से हो गयी </p><p>जिस्म कहीं भी जले, मुलाकात </p><p>रूह से हो गयी </p><p><br /></p><p>किस तरह अब वो झुठलाए </p><p>हमारा सुलगना उनके सीने में </p><p>अब तो कायनात सांस लेती है </p><p>बस हमारे इश्क़ के होने में </p><p><br /></p><p>यूँ उलझाकर के बातों में कहो</p><p>कहा ले जाने का इरादा है </p><p>बस अब लौट कर न जाओ </p><p>क्या दिल से इतना सा वादा है? </p><p><br /></p><p>ख्यालो में एहसासों में और इन लब्ज़ो में भी तुम </p><p>बिखरे हुए सम्हले हुए ख़ामोश जज़्बों में भी तुम </p><p>धड़कते हो सीने में और बहते हो रगों में भी </p><p>देखकर तुम्हे बेकाबू हुयी, मेरी नब्जों में भी तुम </p><p><br /></p><p><br /></p><p>कैसी होती है तन्हाईयाँ भला </p><p>बस वो जानते हैं या फिर हम </p><p>जब आईने में खुद को ढूंढते हैं </p><p>होते हैं ज्यादा वो, हमीं कम </p><p><br /></p><p><br /></p><p>रंग रंग रंग रंग </p><p>भीतर भी बाहर भी </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>मिलावट में प्रेम नहीं करते हम </p><p>पर शुद्धता की गारंटी अकेले कैसे ले?</p><p>प्रेम भी फिर अकेले ही करना होगा। </p><p><br /></p><p><br /></p><p>तुम्हारी नींद में सुनती हूँ</p><p>मैं जागकर साँसे </p><p>मुझे यकीं देती है की </p><p>हाँ, </p><p>अब मेरी भी चल रही है </p><p><br /></p><p>अब और कौन सी तमन्ना कर लूँ , जो बाकी है </p><p>तुम आ गए हो और जिंदगी मुकम्मल सी हो गयी. </p><div><br /></div>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-92048291599651410392022-01-22T12:28:00.000-08:002022-01-22T12:28:04.622-08:00January 2022Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-48667701105936398842021-11-27T19:59:00.002-08:002021-11-27T19:59:14.840-08:00<p> रहने दो कायदों की कैद </p><p>अब तुम ज़माने के लिए </p><p>लो पलके झुका ली</p><p>तेरी आँखों में समाने के लिए </p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-469575674690015562021-11-25T14:38:00.004-08:002021-11-25T14:54:39.802-08:00<p>ये है इंतज़ार की किस्मत </p><p>नहाकर इश्क़ में हम तुम </p><p>न ही डूबे , न ही उतरे </p><p>न लग पाए पार अब हम तुम </p><p><br /></p><p>यु ही सुलगो ,मगर न जलो </p><p>नहीं बुझने वाली ये कभी </p><p>हवाएं साँसों की जबतक </p><p>रहेगी आंच , ये हम तुम </p><p><br /></p><p><br /></p><p>नहीं इन लब्ज़ो की मंजिल है</p><p>न ही वो दिल को हासिल है </p><p>इधर चुभती हुयी सी आस </p><p>उधर एक यार, गाफिल है </p><p><br /></p><p>है अगर इश्क़ तो मेरे बाद </p><p>एक ईमारत लब्जों की मेरे </p><p>बनाकर, सफ़ेद सी मेरे यार </p><p>कभी, सजदे कर लिया करना </p><p>-</p><p>ताजमहल </p><p><br /></p><p><br /></p><p>न तब थी मेरे बस में </p><p>न अभी है , हाय मेरा ये दिल </p><p>हैं जब तन्हाईयों की मंजिल </p><p>यही आकर, तू मुझसे मिल </p><p><br /></p><p>जब हम किसी को खोने के डर से सच नहीं बोल पाते </p><p>हम तो स्वतः उसे खो चुके होते है, बस मान नहीं पाते. </p><p><br /></p><p>वही जलता है सीने में </p><p>वही दिल का शुकुन भी है </p><p>जहा ठहर जाते है जाकर </p><p>कम्बख्त, वही मेरा जुनूँ भी है </p><p><br /></p><p>क्या तुम्ही थे कृष्ण की मूरत </p><p>क्या सांवली सी थी वो सूरत </p><p>धुनकी में बस लिखी जा रही हूँ </p><p>कब हो, कब हो दर्शन की महूरत</p><p><br /></p><p><br /></p><p>न जो बोलोगे तो भी हम बोलेंगे </p><p>न जो देखोगे तो भी हम दिखेंगे </p><p>अब तो लगी तुम्ही से ये लगन </p><p>अब तो भई मीरा तेरी ही जोगन </p><p>तेरे सोने पे जगे, अब जागे ही सोयेंगे </p><p><br /></p><p>कैसा तू निर्मोही, जो ऐसे मुझको सताये </p><p>क्यों पहले मीठी बोलियों से ऐसे रिझाये </p><p>जब रोम रोम तक मैं हूँ भींग गयी </p><p>तू दूर दूर से अब अठखेलियां बुझाये </p><p>कैसा तू निर्मोही, जो ऐसे मुझको सताये </p><p><br /></p><p>चले जाओगे तो जाओ </p><p>हम अब कहाँ छूट पाएंगे </p><p>आप कितना भी चाहें </p><p>हमसे नहीं रूठ पाएंगे </p><p>पक्का रंग प्रीत का </p><p>बह ले कितनी भी आंधी </p><p>तेरे इश्क के घरोंदे </p><p>न जी न, अब न टूट पाएंगे </p><p><br /></p><p>ये जो ख़यालो की ऊँगली पकड़ </p><p>हमें अपने साथ कहीं ले चले हो </p><p>यहाँ से कितना और कैसे</p><p>वो भी अब तुम ही तय करो </p><p>हमें न सफर न मंजिलों की फ़िक्र </p><p>जहां तक निगाह हो, बस हमसफ़र रहो </p><p><br /></p><p><br /></p><p>जानती हूँ, मैं जिम्मेदार हूँ </p><p>जरा सी इस हालात की तेरी </p><p>मानती हूँ, में हिस्सेदार हूँ </p><p>अब, सुबह और रात की तेरी </p><p><br /></p><p>जवाब यु तो नहीं है मेरे पास </p><p>पर सवालों से थकती नहीं हूँ मैं </p><p>उम्र की हद तय कर पायेगा कौन </p><p>बेइंतहां मेरी और बात की तेरी </p><p><br /></p><p><br /></p><p>सितम आपके है ये </p><p>या हमने ख़ुद ही ढाये हैं </p><p>रिश्ते मजबूर से दिल के </p><p>क्या आपने निभाए हैं? </p><p>है आरज़ू उनकी और </p><p>हम ख़ुद से पराये हैं </p><p><br /></p><p><br /></p><p>तू जुनूँ भी </p><p>तू शुकूं भी </p><p>ख्वाबों में चलती जाऊं </p><p>फिर, तेरे सीने में रुकूँ भी </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>न रातें हिज़्र की कटेंगी </p><p>न ख़त्म होंगी बेकरारियाँ </p><p>तू भी तो नहीं हासिल तन्हाईयो का फिर </p><p>या खुदा, इस मर्ज़ की दवा क्या है? </p><p><br /></p><p>खुद से मुझको उम्मीदें हैं </p><p>हैं खुद ही से मेरे सपने </p><p>यु बस हंस के थाम ले </p><p>कहाँ है मेरे वो अपने </p><p><br /></p><p><br /></p><p>रहे हैं और रहेंगे , इन दिलो में ख्वाब सिंदूरी </p><p>काग़ज़ की सरहदें पर दिलों में कौन सी दूरी </p><p>एक तुम बस एक मैं, और ख़ामख़ा के रिश्ते </p><p>लो देखो हो गयी यहीं अपनी ये क़ायनात पूरी </p><p><br /></p><p>कुछ नहीं करने को साबित </p><p>अब रहा </p><p>मैं हूँ, तुम हो, </p><p><br /></p><p>इश्क़ सच्चा</p><p>वो होगा तो, होगा बड़ी सिद्दत से </p><p>वरना, जनाब ये तो बस एक नशा </p><p>आप मजबूर, किसी की आदत से </p><p><br /></p><p>एहसास, वो भी इतने सारे </p><p>कमीने, आते कहाँ से है? </p><p>आख़िर बुलाया किसने इन्हे? </p><p>मुंह उठाये चले आ रहे है.</p><p>वो भी, बिना परमिसन ! </p><p><br /></p><p><br /></p><p>जो सच ही कहते है </p><p>उनसे सौ दफ़ा पूछना </p><p>इस उम्मीद से की </p><p>जवाब बदल जायेगा </p><p>बेवजह. </p><p><br /></p><p>ये तो तेरे साथ हूँ , या फिर तेरे इन्तेज़ारी में </p><p>एक पल लम्हा शूंकु का, तो जाँ बेकरारी में </p><p>उफ़ दिवानेपन की इन्तेहाँ अब और क्या कुछ है? </p><p><br /></p><p>न जाने ये रस्ते कहाँ लेके जायेंगे </p><p>न जाने कब खुद से नजर मिलाएंगे </p><p>दौर कैसा भी हो, सफर में मोड़ जैसे भी </p><p>बिन तेरे अब तो नहीं जी पाएंगे </p><p><br /></p><p>यकीं इतना रहे तू मुस्कराता है </p><p>ख़यालो में मेरे यूँ डगमगाता है </p><p>पुकारू जो मैं खयालो में भी </p><p>सब कुछ छोड़, तू भाग आता है </p><p><br /></p><p>नहीं इतनी मुहब्बत </p><p>के भी काबिल तुम नहीं </p><p>नहीं मेरी जिंदगी में</p><p>थे भी शामिल तुम नहीं </p><p>मैं रख लूँ शौक से </p><p>जितना सा भेजा है </p><p>तोहफ़े कम है क्या? </p><p>बस एक, हासिल तुम नहीं </p><p><br /></p><p>तू अपनी बोली में यु ही मुझको भिगोता जाए </p><p>तू नश्तर अपनी निगाहों के बस चुभोता जाए </p><p>जहाँ को एक पल भनक भी ना पड़े श्याम </p><p>मैं तेरी दीवानी मीरा और तू मेरा होता जाए </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><div><br /></div>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-74072964496794542312021-09-16T08:38:00.003-07:002021-09-16T08:55:37.567-07:00<p> कितनी भी हो काली रात </p><p>सुबह आती ही है </p><p>जहाँ होती है दिलों की बात </p><p>सुलझ जाती ही है </p><p><br /></p><p>मिला दिल को शुकूं और लबो को जो हंसी </p><p>तो कर गए फिर एक गुस्ताख़ी हम </p><p>पर क्यों दिल बस कह रहा है शुक्रिया </p><p>क्यों पड़ गयी हज़्ज़ार माफ़ी कम</p><p><br /></p><p>है मेरी , जैसी भी है </p><p>तू जिंदगी कमसिन </p><p>ए रूह, तुमसे भी मिलेंगे </p><p>कमब्खत एक दिन</p><p><br /></p><p>कमब्खत उस दिन</p><p>न होगी रात और न दिन </p><p>एक लम्बी शाम होगी </p><p>आसमा चाँद बिन </p><p><br /></p><p>फंसाकर इन उंगलियों में उंगलिया </p><p>हेना से रंग दू हथेली, मैं तुम्हारी भी </p><p>लिख जायें दास्ताने इश्क़ आज </p><p>लब्ज़, कुछ तुम्हारे और कहानी कुछ हमारी भी </p><p><br /></p><p>तुम्हारा दिल धड़कता है </p><p>हमारा नाम उसमे क्यों? </p><p>तेरा गुलशन महकता है </p><p>हमारा काम उसमे क्यों? </p><p>है चिलचिलाती दोपहर </p><p>झुलसते जिस्म हालात में </p><p>शुकूं का एक लम्हा, बस </p><p>हमारी शाम उसमे क्यों? </p><p><br /></p><p>न कहनी है</p><p>न करनी है</p><p>न सुननी है </p><p>बस </p><p>ठहर जाओ </p><p>हां, मनमानी. </p><p><br /></p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-42547108503349753652021-09-12T04:27:00.003-07:002021-09-12T04:28:58.456-07:00<p> जब दूर थे </p><p>अनजान थे </p><p>तो खास थे </p><p>गुमनाम से </p><p><br /></p><p>पास आते ही </p><p>कुछ पाते ही </p><p>थे दरम्यां </p><p>एहसास से </p><p><br /></p><p>पर अब नहीं </p><p>खोये कही </p><p>वो आरज़ू </p><p>चुपचाप से </p><p><br /></p><p> तय तो कर लेंगे सफर , हम तनहा भी मगर </p><p>ए जिंदगी तू साथ होती, फिर बात ही क्या थी </p><p>जो रोशन इन दिलो की आग से होती </p><p>हो कितनी भी अँधेरी ,फिर वो रात ही क्या थी </p><p><br /></p><p>नज़रअंदाज कहकर बस हमी को ही ,तुम पिया</p><p>देखो ना </p><p>तुम्हारे नाम से हमको अभी तक है देखती दुनिया</p><p>देखो ना </p><p>तुम्हारे नूर से ही तो है रोशन, जहाँ मेरी उम्मीदो की </p><p>आये हो बनकर बारिशों से, तो जी भर भीगते हैं आज </p><p>देखो ना </p><p><br /></p><p>अभी मैं जरा जरा सी टुकड़ो में बंटी हूँ </p><p>एक हिस्सा अतीत में और कल में भी हूँ </p><p>गुजर कर ठहर गया, फिर कहीं गया ही नहीं</p><p>उस पिघले से और जमे हुए , पल में भी हूँ </p><p><br /></p><p><br /></p><div><br /></div>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-45093382586412609152021-09-08T20:43:00.002-07:002021-09-08T20:43:48.662-07:00<p> हर सुना अब </p><p>अनसुना कर </p><p>अड़ गयी </p><p>बस लड़ गयी मैं </p><p><br /></p><p>दीवार थी </p><p>और चोट खाकर </p><p>कील जैसी </p><p>हूँ गड़ गयी मैं </p><p><br /></p><p>न हिलूंगी</p><p>न मुड़ुँगी </p><p>हर दर्द से </p><p>आगे बढ़ गयी मैं </p><p><br /></p><p><br /></p><p>अनदेखा कर</p><p>सब देखते हैं </p><p>चुपचाप से अब </p><p>हर ईमारत चढ़ गयी मैं </p><p><br /></p><p>उफ़ क़यामत कर गयी मैं </p><p>हाय क़यामत कर गयी मैं </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-11164227049816793652021-08-28T11:29:00.003-07:002021-08-28T11:29:41.948-07:00प्रेम - तलाश ख़त्म <p> "गोरे बदन पे, उंगली से मेरा , नाम अदा लिखना " - गुलज़ार </p><p><br /></p><p>किसने लिखा , किसने पढ़ा और किसने समझा? अब कौन माथापच्ची करे इसमें।</p><p><br /></p><p>हम तो बस श्रेया घोषाल के अंदाज पर कुर्बान हो लिए और यकीं भी कर लिया की "रातें बुझाने तुम आ गए हो". </p><p><br /></p><p>प्रेम - तलाश ख़त्म . </p><p><br /></p><p>आज बड़े दिन बाद, इस कड़ी में एक और जोड़ देने का मन हो चला है. </p><p>क्यों? ऐसी कोई वजह नहीं है मेरे पास आज देने को. और आपको भी, आम खाने से मतलब होना चाहिए न की पेड़ गिनने से. पिछले साल की मई के बाद , नहीं लिख पायी थी कोई और कड़ी. जैसे जंजीरो से ही रिश्ता तोड़ लिया हो मैंने. लेकिन अब ऐसा लगता है, मेरे अनदेखे कर भी देने से ये जंजीरे मुझे अकेला नहीं छोड़ेंगी. </p><p>और फिर ये ख्याल आया की इंसान जंजीरो में पड़े रहने को ही तो कही प्रेम नहीं कहता हैं? </p><p><br /></p><p>न, जंजीर खुद प्रेम नहीं होता पर हमारी तीब्र आकांक्षा किसी न किसी जंजीर में बंधे रहने की और बाँध लेने की, कई बार प्रेम कहलायी चली जाती है. </p><p><br /></p><p>हाँ, अब ये भी सच है की बिना प्रेम किसी को बाँध लेना, या बंध जाना संभव भी नहीं. लेकिन बस बंधे रहना भी तो प्रेम का हासिल नहीं। प्रेम, प्रतिष्ठा और प्रेरणा उतनी ही मिलेगी जितनी हिस्से में होगी. न कम , न ज्यादा. प्रकृति की रीत तो यही है की जो जितना जिसका है , वो कोई चाह के भी नहीं ले सकता और जो नहीं है.. वो मिल भी नहीं सकता। तो फिर तलाश कैसी? तलाश किसकी? </p><p>वैसे भी, जब गुमशुदा लोग ही दुनिया के फ़र्ज़ी लोगो द्वारा बांटे गए नक्शों को लेकर अपनी जिंदगी और अपना प्रेम तलाशने निकले हो, तो उन्हें मंजिल क्या ख़ाक मिलेगी. </p><p>लेकिन अपनी ये तलाश परेशां, बेचैन और अधूरी लगे , ये ज़रूरी नहीं। </p><p>शायद तलाश ही हमारा , हासिल हो? </p><p>शायद सफर ही हमारी मंज़िल हो? </p><p>और मंजिल है ही क्या कही? </p><p>हमारी ये खुशनुमा सी , हलकी फुलकी सी , सर्दियों की धूप सी , बारिश की बूंदो सी, पतझड़ के पीले पत्तो सी, नयी उग आयी हरी घास सी, एक सुलगते हुए अर्सो की उम्र वाले लम्हे सी, चादरों की सिलवटों सी, किताबो में बंद सूखे गुलाबों की पंखुड़ी सी , गीली मिट्टी की खुशबु सी , बिन पते लिखी गयी चिठ्ठियों सी। </p><p>साँसे फूल गयी मेरी , सोचते सोचते. </p><p>और क्या ही है प्रेम , अगर ये सब नहीं तो? </p><p>फिर कैसी तलाश ? </p><p>प्रेम शुरू भी हम से होता है और खत्म भी हम से. किसी अंतहीन से पानी के झरने जैसी , अब इसमें कोई आकर आपके साथ भीग ले तो शुभान अल्लाह. </p><p><br /></p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-73698109761185139562021-08-08T11:24:00.002-07:002021-08-08T11:24:36.400-07:00<p> जन्म </p><p>मेरा हुआ था </p><p>सिर्फ मेरे परिवार की लक्ष्मी बिटिया का नहीं </p><p>अरमान </p><p>कुछ मेरे भी थे </p><p>मेरे पूर्वजों के अधूरे वालों के अलावा भी </p><p>ह्रदय </p><p>मेरा अपना भी था </p><p>सिर्फ मंडप पर मेरे साथ खड़े पुरुष का ही नहीं </p><p>मर्यादा </p><p>मेरी भी थी </p><p>सिर्फ यदा कदा जुड़ते गए रिश्तों के ही नहीं </p><p><br /></p><p>लेकिन दायित्व</p><p>सपनों को स्वाहा करने ही </p><p>मर्यादाओं के उल्लंघनों की</p><p>ह्रदय के छलनी हो टूटने की </p><p>और अरमान? </p><p>उन्हें मृतक घोषित करने की </p><p>सिर्फ मेरी अकेले की </p><p>सिर्फ और सिर्फ मेरी अपनी </p><p><br /></p><p><br /></p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-42986118370259945252021-08-07T12:44:00.004-07:002021-08-07T12:54:17.478-07:00बिरयानी<p> "कोशिश. हर कोई अपनी तरफ से पूरी ही करता है. मैंने की थी तो तुमने भी की ही होगी, अब न बनी तो न सही. "</p><p>"क्या?"</p><p>"बिरयानी, और क्या. "</p><p>"क्या बात करती हो? बिरयानी न बनी तुमसे? कब से तो हांड़ी टांग रखी है तुमने. और वो जो खुशबु पुरे मोहल्ले में थी? सो क्या था भला. "</p><p>"अरे बहन. खुश्बुओ का क्या है, आजकल बाजार में न हम फ्लेवर की अगरबत्ती मोमबत्ती या एयर फ्रेशनर मिल जाता है. तो बस. कभी मैं, कभी मेरे वो , वही छिड़क दिया करते थे. जब जब लोग गुज़रते थे. लेकिन बिरयानी तो कभी न बन सकी हम से. "</p><p>" हमारे घर तो हर रोज़ बनती है. " थोड़ा ऐंठते हुये बोली पल्लो। </p><p>"अच्छा है बहन, अब शौख तो मुझे भी बहुत था. लेकिन क्या करे , सबके भाग तुम्हारे जैसे कहाँ होते है ". </p><p>"हाँ हाँ सो तो है, चलो कोई बात नहीं। अब तक जैसे मोमबत्ती , एयर फ्रेशनर से काम चलाया है , चला लो." </p><p>"न , मैंने तो हांड़ी ही फेंक दी". </p><p>ऐसा लगा जैसे पल्लो के सर पर ही फोड़ दिया हो। </p><p>"क्या बक रही हो? हांड़ी ही फोड़ दी, ऐसा अनर्थ कैसे कर दिया? चलो दिखाओ कहाँ हैं टुकड़े, सब जोड़ती हूँ. सबको बुलाना पड़ेगा , क्या कर बैठी है ये. हे भगवन, "</p><p>मैं कब का सुनना बंद कर चुकी हूँ. हांड़ी फोड़ दी, सो फोड़ दी. और जोड़ तोड़ के काम चलने से अच्छा है, मैं न खाती न बनाती अब बिरयानी. </p><p>लेकिन आँखे भर आयी है, माँ ने बड़े शौख से दी थी मुझे जब ब्याहा था. कहा था, मेरी बिटिया बड़ी गुनी है और घर आँगन मुहल्ला महकाये रखना। मुझसे न हुआ , न हुआ। </p><p>"अब रो क्यों रही है, खुद ही किया न सब? अब भुगतो". </p><p>कुछ परेशान और कुछ कुढ़ कर , पल्लो भी चल दी. </p><p>शायद उसे उसके हांड़ी के दरार साफ़ दिख रहे थे , जोडने में इतनी माहिर है की अब ऐसे तो नहीं जतायेगी न. </p><p>भगवन उसकी रसोई और रसोयी से आती खुशबु बरकरार रखे. </p><p>मुझे तो अब कुछ और सोचना पड़ेगा, चलो फावड़े उठाऊँ और कुछ खेती बारी कर लूँ। </p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-3924206311942063562021-05-31T17:39:00.005-07:002021-05-31T17:39:28.494-07:00भक्ति और श्रृंगार लिखेंगे <p><br /></p><p>हम न थे तो आवाज थे </p><p>युगों युगो भी , आवाज रहेंगे </p><p>जो लब कभी खुल के कह न सके </p><p>वो धड़कनों के आज अल्फ़ाज़ कहेंगे </p><p><br /></p><p>कौन रोक सकता है भला </p><p>इन अरमानो के दरिया को </p><p>अँधियो से, बाढ़ बनकर </p><p>हम होकर एक गुमराह, धार बहेंगे </p><p><br /></p><p>मुहब्बत होती है एक बार </p><p>तो फिर बदलती कहाँ कभी </p><p>जो मौसमो सा बदल जाए </p><p>उससे क्या ख़ाक कहेंगे ?</p><p><br /></p><p>उम्मीदों के रंगो ने बेरुखी कर ली </p><p>बेरंग आरजुओं ने भी ख़ुदकुशी कर ली </p><p>रंगरेज़ सुन ले, अब तेरे ही रंग में </p><p>कम्बख्त दिल का हर एक तार रंगेगे </p><p><br /></p><p><br /></p><p>रुसवाई का अब क्या ख़ौफ़ </p><p>और क्या तन्हाईयो से डर </p><p>रूप मीरा का धर के कृष्ण </p><p>जब भक्ति और श्रृंगार लिखेंगे </p><p><br /></p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-30759735263939378642021-05-23T05:19:00.003-07:002021-05-23T05:19:17.338-07:00 राधे राधे राधे श्याम , गोविन्द राधे हे जी राधे. <p> राधे राधे राधे श्याम , गोविन्द राधे हे जी राधे. </p><p><br /></p><p>मॉर्निंग वाक और कृष्णा दास की रूहानी आवाज़ में इस कीर्तन की धुन , जैसे किरणों को और भी तेज़ और भी ताज़ी करे दे रही है. पैर रास्ते पहचानते हैं और दिमाग अपनी बहकी बहकी खयालो की रफ़्तार। फिर क्या है , कुछ इस तरह भागते हैं ख्याल. </p><p>इस कीर्तन की हर लाइन में , राधे पांच बार है और श्याम दो ही बार वो भी एक बार तो नाम बदलकर ? क्यों भला? </p><p>कहीं इसलिए तो नहीं की कृष्ण को कई रूप धरने है महाभारत तक की यात्रा में और भगवत गीता की रचइता बनने में , और उधर राधा तो बस एक ही वजह से जानी जाती है. अटूट और अथाह प्रेम। वैसे प्रेम बिना धैर्य और साहस के नहीं होता , तो जायज है ब्रज की इस छोरी में वो भी कूट कूट के भरा है। वरना दुनिया ने जब इसकी मूरत कृष्ण के साथ गली गली और घर घर में लगा डाली तो वो चूं भी न करे ? ऐसा साहस और धैर्य के बिना हुआ है क्या भला? </p><p>तो फिर क्या था , दिमाग ने रच डाली एक और थ्योरी. कृष्ण और कुछ नहीं बस कर्म और जीवन के प्रत्येक अध्याय की ऊंची नीची होती जैसे एक पर्वत श्रंखला हैं जिसके फाउंडेशन में बहती है साहस धैर्य और अंतहीन सी, कलकलाती , झूमती , लहराती राधा नाम की एक नदी। अपने आप में सम्पूर्ण , हर बाधाओं को तोड़ती और कही न कही किसी मिलन को बेचैन , न रूकती न ठहरती राधा. </p><div><br /></div>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-659131547389324042021-05-15T14:37:00.007-07:002021-05-15T14:59:19.317-07:00मर्यादा<p> मीरा की छाती धौंकनी सी चल रही हैं, टांगो के बीच है फंसा एक यन्त्र और स्क्रीन पर नजरे टिकाये नर्स. </p><p>जिसका डर है, वही बात है. मीरा की ही धड़कनो की एक प्रतध्वनि से कमरा गूँज उठा है. </p><p><br /></p><p>बधाई हो , बिलकुल नार्मल और हैल्थी प्रेगनेंसी है </p><p><br /></p><p>धड़कने और तेज़, गर्दन टेढ़ी कर स्क्रीन पर देखती है. एक काला धब्बा छोटा बड़ा हो रहा है , कुछ अंक इर्द गिर्द डूब उभर रहे हैं। </p><p>कौन है ये ? इसको जीवन कहूँ या नहीं ? </p><p>ह्रदय विचलित है और आंखे भर भर उलझ रही है। नर्स चुपचाप अपना काम कर रही है , उसकी तो दिनचर्या है। २ घंटे के बाद मीरा का नम्बर आया था , उसके पहले न जाने कितने और शरीर और कितनी और धड़कनो की चित्र आंक चुकी है आज ये मशीन. </p><p>किर्र किर्र की आवाज और मीरा के हाथ में एक तस्वीर थमा देती है. मीरा अनायास उसे ले लेती है. </p><p>अब आप चेंज कर लीजिये और डॉक्टर से मिल लीजिये। </p><p>मशीन अब नहीं है टांगी के बीच लेकिन और भी बहुत कुछ तो है ? </p><p>क्या करूँ ? कैसे कहूँ ? </p><p>उसने तो कह ही दिया था, उसी दिन. </p><p><br /></p><p>" जाओ देख लो, जो करना है. "</p><p><br /></p><p>इको होती रहती हो वो ठंढी आवाज और उसका किया एक फैसला मीरा के ज़ेहन में.. </p><p><br /></p><p>" मुझे ये प्रेगनेंसी टर्मिनेट करनी है. "</p><p><br /></p><p>मीरा सधी हुयी आवाज़ में कहती है. </p><p><br /></p><p>डॉक्टर उसे २ ऑप्शन समझाता है. चूँकि ये बहुत ही अर्ली है, टेबलेट खाना है बस. लेकिन एक अभी उसी समय और दूसरी घर जाकर २४ घंटे बाद. </p><p>इस टेबलेट से तुम्हारी प्रेगनेंसी यूटेरस के वाल से अलग होने लगेगी और बाद वाली टेबलेट सेफ्ली फ्लस कर देगी. घर में कोई है ? </p><p>नहीं, क्यों?</p><p>तो कोई बात नहीं। लेकिन एक बार ब्लीडिंग शुरू हो तो ब्लड प्रेसर नीचे जा सकता है , और दर्द के लिए ये गोलियां ले लेना, लिख देता हूँ । </p><p>२० मिनट मीरा गोली लेके बैठी है , निगलू या उगलू ? एक बार पूछ लेती उसको? कहीं मन बदल जाए ? </p><p>न , अभी कहाँ फ़ोन लेगा मेरा, मीटिंग के बीच. </p><p>आंखे आंसू घोंट लेती है और मीरा एक गोली. दूसरी को लेकर पर्स में रखती है, </p><p>"थैंक्स डॉक्टर. "</p><p>" टेक केयर "</p><p><br /></p><p>फ्रंट डेस्क में पेमेंट करके कार में बैठ तो गयी है. लेकिन जाये कहाँ ? घर? </p><p>फ्रंट मिरर एडजस्ट करके अपना चेहरा देखती है, खून जैसे सूख गया है सारा. </p><p>"कातिल हो क्या तुम?" </p><p>आइना कहता है और चीख निकल पड़ती है. चीखती जाती है मीरा न जाने कब तक, तब तक जब तक उसकी आवाज बंद नहीं हो जाती. </p><p>किसी तरह घर पहुँचती है , थोड़े देर में स्कूल बस आने वाली है. अब ऐसे शकल नहीं बना के बैठ सकती मैं न. </p><p><br /></p><p>बस से उतरते ही यश की बांछे खिल जाती है माँ को देख कर और हमेशा की तरह भाग कर आता है और उसकी बांहो में भर जाता है। </p><p>ममता से भरा मन और साथ में गर्भ में धीरे धीरे धीमी पड़ती धड़कने एक साथ झिझोड़ देती है मीरा को. </p><p>"तुम होमवर्क करो, मैं अभी आयी"</p><p><br /></p><p>"पिया , तुम घर पर हो क्या? मैं आ जाऊं? "</p><p><br /></p><p>पिया बहुत पुरानी सखी और पड़ोसन है मीरा की, उसकी आवाज से ही भांप लेती है उसके मन की स्थिति </p><p><br /></p><p>"अरे आओ न"</p><p><br /></p><p>किसी तरह घुसती है पिया के घर और सीढ़ियों पर ही टूट कर बिखर जाती है मीरा. </p><p><br /></p><p>पिया चुपचाप उसके पास बैठी है , कैसे सम्हाले , क्या बोले? कितने ही लम्हे ऐसे निकल जाते हैं </p><p><br /></p><p>"अब चलती हूँ " </p><p><br /></p><p>शाम, रात जैसे तैसे कटती है. कोई कुछ नहीं पूछता है मीरा से और मीरा के पास भी कुछ नहीं बोलने को.</p><p><br /></p><p>सुबह दूसरी गोली लेनी है , बस यही ख़याल लिए रात भर सोने का नाटक करती है. मेरे अंदर होने वाली एक और धुक धुक क्या हलकी हो रही है ? न आंखे सोती है न रोती हैं. </p><p><br /></p><p>दिनचर्या जैसे तैसे हो जाती है, पती बच्चे अपने अपने जगह के लिए जा चुके हैं . </p><p><br /></p><p>घर में अकेली मीरा अनंत में खोयी बैठी है जब अचानक हज़ारो छुरियां जैसे एकसाथ घुस जाती है उसके गर्भ में और चीख उठती है मीरा। खून का एक तेज़ बहाव उसके सारे कपड़ो के पार हो जाता है और छुरिया जैसे ताबड़तोड़ बरस रही है. मीरा की चीखों से पूरा घर गूंज रहा है पर आवाज उसके गले से निकलती है और फिर दीवारों से टकराकर बस , उसके कानो तक वापस आ जाती है। </p><p><br /></p><p>कुछ होश और कुछ बेहोशी में वो पिया का नंबर मिलाती है , आवाज बंद है पर पिया जानती है. </p><p>"कुछ ही मिनटों में आ रही हूँ, सांस लो ठीक है। .. अभी आयी" </p><p><br /></p><p>पिया आकर उसे बाथरूम ले जाती है , मीरा के इशारे पर उसे अकेले ही छोड़ देती है कुछ देर. </p><p><br /></p><p>मीरा हताश सी खून के बहते थक्को को देख रही है. तभी याद आता है की उसके स्वेटर की पॉकेट में अल्ट्रा साउंड की तस्वीर भी मौजूद है. </p><p>मिला रही है , क्या ये एक बनने वाले शरीर का हिस्सा था ? कौन सी कोशिका हाथ पैर या ह्रदय बनती , कौन जाने? कौन बताएगा ? </p><p><br /></p><p>चाकू सिर्फ गर्भ ही नहीं , ह्रदय को भी छलनी किये जा रही है, लेकिन चीखों की कोई पहचान कहाँ होती है , आंसुओ का कोई रंग कहाँ होता है और लहू ? औरत के लहू की कोई मर्यादा कहाँ होती है?</p><p><br /></p><p><br /></p><p>नहीं जानती क्या , आये दिन तो पड़ोस की बुआ रिक्शा पकड़ के लेडी डॉक्टर के पास से हो आती थी. कुछ ऐसी ही वजह हुआ करती थी , ऐसा ही कुछ कहती थी उसकी पक्की सहेली।</p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-72737515833306511062021-05-09T19:02:00.002-07:002021-05-09T19:02:15.430-07:00मास्क ज़रूर लगाइये क्युकी बचने में ही भलाई है. <p> </p><p><br /></p><p>क्या कोरोना कोरोना लगा रखी है. </p><p><br /></p><p>प्यार नहीं हुआ क्या कभी ? </p><p>ठहरो बताती हूँ. </p><p>मुझे हुआ था एक बार. </p><p>और वो भी क्षण भर में। आफत ये की , किसी को खबर तक नहीं हुयी, इन्फेक्टेड को भी नहीं. </p><p>लेकिन सिम्पटम्स , तौबा तौबा. नींद ख़तम, भूख प्यास सब ख़तम , पसीने - पसीने और धड़कने तो लगता था जैसे किसी ने कलेजा निकाल रेल की पटरियों पे रख दिया हो, जिसपर ट्रैन आती नहीं की कुचल ही डाले </p><p>लेकिन लगातार धड़ - धड़ धड़- धड़. बस, ऐसे ही चलता रहा , और सामने वाला एसिम्पटोमैटिक था तो अब किसको दोष दें भला. </p><p>हमने भी न फैलाया ये रोग और आइसोलेशन मैंटेन की. </p><p>और समझ लिया की इम्यून भी हो गए. </p><p>लेकिन देखे , क्या पता अब देश की हालत देख रही हूँ तो लगता है की कहीं , खुदा न खास्ते कोई नया स्ट्रेन आएगा मार्किट में तो फिर से इन्फेक्शन न हो जाये. </p><p>तो बंधुओ , प्रेम हो या कोरोना। </p><p>मास्क ज़रूर लगाइये क्युकी बचने में ही भलाई है. </p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-76110437915286815872021-04-03T06:36:00.002-07:002021-04-03T06:36:20.810-07:00<p> इबादत </p><p><br /></p><p>कहता है कहानी</p><p>बहता हुआ पानी </p><p>थोड़ा सा है समय </p><p>सफर कहाँ आसानी </p><p>वही जो रुकते हैं नहीं </p><p>इठलाते है लहरों पे </p><p>उम्मीदों के उजालों से </p><p>सुलगाते हैं चेहरों पे </p><p>है इतना, और कितना </p><p>भला मांगू ख़ुदा से मैं </p><p>झुकाकर पलकें बस पालूँ </p><p>तुम्हे , अब हर दुआ में मैं </p><div><br /></div>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-54220141873291373102021-03-31T05:38:00.002-07:002021-03-31T05:38:55.116-07:00<p> अंधियारी कारी रतियाँ </p><p>तो तेरी भोर भी तू ही </p><p>नैनो की भीगी बतियाँ </p><p>मन का शोर भी तू ही </p><p><br /></p><p>न हुआ है, न कोई होगा </p><p>जो तेरी राह बन जाए </p><p>ये डगर, ये सफर </p><p>कदम और मोड़ भी तू ही </p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-23176614689693095932021-03-25T19:39:00.003-07:002021-03-25T19:39:36.017-07:00 शब्द <p> शब्द </p><p>उड़ रहे हैं </p><p>बह रहे है </p><p>हो रहे हैं तितर बितर </p><p>यहाँ वहां इधर उधर </p><p><br /></p><p>कुछ कहे हुए कुछ सुने हुए </p><p>कुछ लिखे तो कुछ मिटे हुए </p><p>रख लूँ किसे </p><p>किसे जाने दूँ </p><p>और जो दस्तक दे रहा </p><p>उसे क्या आने दूँ? </p><p><br /></p><p>कोई भागता है टोककर </p><p>कोई नापता है सोचकर </p><p>शब्द कोई है ठहरा हुआ </p><p>इस कान से बहरा हुआ </p><p><br /></p><p>कोई पूछता है मेरी वजह </p><p>कोई देखता है बेवजह </p><p>शब्दो की जंजाल में </p><p>फंस गयी मायाजाल में </p><p><br /></p><p>डूबूं अब यहाँ या उतरूं मैं </p><p>सोचती हूँ अब, सुधरूँ मैं </p><p>ये तो हैं सदा से बावले </p><p>इन्हे बाँध कर, क्यों रखूँ मैं </p><p><br /></p><p>कोई शब्द बैठा सी रहा </p><p>हर घाव इस जज़्बात पे </p><p>बखिये उधेड़े और कई </p><p>वो शब्द, हर एक बात पे </p><p><br /></p><p>कोई सींचता बन बागवा</p><p>क्यारी डालिया हैं लद गयी </p><p>शब्द से दिल ही नहीं </p><p>अब निगाहें भी भर गयी </p><div><br /></div>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-72456732978481077502021-03-21T08:06:00.002-07:002021-03-21T08:06:22.160-07:00<p> नहीं नहीं अब और नहीं </p><p>एक कदम भी और नहीं </p><p>फिर भी साथी हम चलते हैं </p><p>ख़्वाब इन्ही दिलो में पलते है </p><p>बेकाबू अपने हालात सही </p><p>टुकड़ो में ये जज़्बात सही </p><p>राह भले तेरी अंजानी है </p><p>मुश्किलें हैं परेशानी है </p><p> उठकर चलना तो होगा न? </p><p>मिलकर बढ़ना तो होगा न? </p><p>राह और कदम का रिश्ता है </p><p>हर चलने वाला, फरिश्ता है </p><p>हर चलने वाला, फरिश्ता है </p><p><br /></p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-74881906499998243712021-03-19T19:11:00.003-07:002021-03-19T19:11:50.975-07:00 आओगे जब तुम साजना <p> आओगे जब तुम साजना </p><p><br /></p><p>चाय की प्याली आधी पड़ी, ठंढी हो रही है और मीरा न जाने किन खयालो में खोयी अभी भी मुस्कराये जा रही है. कानो में कोई धुन लगातार बजे जा रही है और होठो पर हंसी थिरके जा रही है. भोर का सूरज आसमान में अठखेलियां करने को उचकने सा लगा है और प्रकृति उसके आगमन में सारे रंग न्योछावर किए जा रही है. </p><p><br /></p><p>अच्छा तो क्या कहा था उसने? </p><p><br /></p><p>आओगे जब तुम साजना... अंगना फूल खिलेंगे?</p><p> </p><p>अच्छा?</p><p><br /></p><p>मेरे न होने से क्या फूल नहीं खिला था तुम्हारे आँगन में अर्सो से? फूल तो खिलते ही हैं मौसम के आने से हर साल. </p><p><br /></p><p>मैं कोई हवा पानी और मिट्टी तो हूँ नहीं , बसंत तो बस ऐसे ही आता है और फूल लहलहा ही उठते हैं. </p><p><br /></p><p>हाँ अब ये और बात है की कोई कोई मौसम बार बार नहीं आता. ऐसे भी कुछ मौसम होते हैं, जो बस एक बार आकर चले जाया करते हैं , उनमे फूल नहीं खिला करते. बस लम्बी घास पीछे छोड़ जाया करते हैं उन पटरियों के इर्द गिर्द जहाँ से कुछ तेज़ रफ़्तार से रेलगाड़ियां गुजरती रहती है बरसो बरसो तक. </p><p><br /></p><p>और कभी कभी, उन्ही रेलगाड़ियों में बैठा कोई गुनगुना रहा होता है "ये दिल और उनको निगाहों के साये". </p><p><br /></p><p>वो मौसम जा चुका है, वो घास सूख चुकी है पर अब क्या किया जाए.... हवा, मिटटी और भरी हुयी बदरियो के बरसने का? </p><p><br /></p><p>एक हलकी सी हंसी के साथ अपनी चाय की आधी प्याली खाली कर मीरा हैडफ़ोन बगल में रख, चल पड़ती है दिनचर्या के लिए. उसके मंदिर वाले कृष्ण के नास्ते का वक़्त हो चला है. </p><div><br /></div>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-45136629089888523942021-03-06T11:04:00.002-08:002021-03-06T11:04:22.496-08:00<p> सच क्या है, क्या है झूठ </p><p>क्या रह गया, क्या गया लूट </p><p>कितनी कह गयी </p><p>कितनी रह गयी </p><p>कौन जाने ?</p><p>तू जाने या मैं जानू </p><p>तू माने या मैं मानूँ </p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-29921356960039716132021-01-30T07:33:00.001-08:002021-01-30T07:33:06.978-08:00<p> <span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">As I floated off the earth</span></p><div class="kvgmc6g5 cxmmr5t8 oygrvhab hcukyx3x c1et5uql ii04i59q" style="background-color: white; color: #050505; font-family: system-ui, -apple-system, system-ui, ".SFNSText-Regular", sans-serif; font-size: 15px; margin: 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">Reaching for the moon</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">The moon smiled and said</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">Oh my child, not so soon</div></div><div class="o9v6fnle cxmmr5t8 oygrvhab hcukyx3x c1et5uql ii04i59q" style="background-color: white; color: #050505; font-family: system-ui, -apple-system, system-ui, ".SFNSText-Regular", sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">You may see me sometimes,</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">and sometimes you won't</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">You will know that you have me</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">You may doubt, that you don't</div></div><div class="o9v6fnle cxmmr5t8 oygrvhab hcukyx3x c1et5uql ii04i59q" style="background-color: white; color: #050505; font-family: system-ui, -apple-system, system-ui, ".SFNSText-Regular", sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">Just know, just watch, and </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">Acknowledging eternal love </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">Find that peace within</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">As I watch, from far above</div></div><div class="o9v6fnle cxmmr5t8 oygrvhab hcukyx3x c1et5uql ii04i59q" style="background-color: white; color: #050505; font-family: system-ui, -apple-system, system-ui, ".SFNSText-Regular", sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">As I watch, from far above</div></div>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-61235825671890679802021-01-30T07:32:00.002-08:002021-01-30T07:32:36.948-08:00<p> मेरी बात करो न </p><p>क्युकी मैं भी तुम्हारी कर रही हूँ </p><p>इसकी उसकी </p><p>यहाँ की वहां की </p><p>सारे जहाँ की </p><p>मुझे क्यों सुना रहे हो </p><p>मुझसे शिकायत है तो कहो </p><p>क्युकी मुझे तो तुम्ही से है </p><p>नहीं सुनोगे? </p><p>मत सुनो. </p><p>पर मैं कहती रहूंगी </p><p>पर मैं लिखती रहूंगी </p><p>होते रहेंगे वार्तालाप </p><p>मेरे और तुम्हारे न सुनने के बीच </p><p>बनते रहेंगे तिनकों के पहाड़</p><p>अनकहे अनसुने शब्दों के </p><p>और एक दिन क्या होगा पता है? </p><p>मैं इन तिनकों के पहाड़ को </p><p>हवन कर के , बढ़ जाउंगी </p><p>फिर तुम सुनते रहना </p><p>राख में बुझती चिंगारिया </p><p>फिर तुम चुनते रहना </p><p>मेरे अरमानो की जली हड्डियां </p><p>जानते नहीं क्या? मैं हाड मांस की कहाँ </p><p>ख्वाबो, अरमानो और ज़ज़्बातो से ही तो बनी थी </p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7724860328799853109.post-34418143280376506982021-01-27T08:51:00.002-08:002021-01-27T08:51:24.236-08:00पर क्या वो खुश है? <p> अरे सुना तुमने? लाड़ली का ब्याह है </p><p>क्या सुन्दर दूल्हा, क्या शानदार घरबार है </p><p>भाग्यवंती है लाड़ो </p><p><br /></p><p>पर क्या वो खुश है? </p><p><br /></p><p>कितने गहने, कितने कपडे लत्ते </p><p>क्या ही ठाट बाट है </p><p>सबकुछ शुभ शुभ निपट गया </p><p>ये सब किस्मत की बात है </p><p><br /></p><p>वो सब तो ठीक, लेकिन क्या वो खुश है? </p><p><br /></p><p>खबर आयी है, लाड़ली पेट से है </p><p>भगवन सब को ऐसी किस्मत दे </p><p>अरे बेटा हुआ है</p><p>मिठाई बांटो थाली बजवाओ </p><p><br /></p><p>हाँ हाँ खिलाओ, लेकिन वो खुश तो है न? </p><p><br /></p><p>अरे क्यों न होगी? करमजली </p><p>तू , हर बात पे ये सवाल क्यों कर बैठती है? </p><p>कौन नहीं होगा खुश? </p><p><br /></p><p>अब आँखों का खालीपन है तो क्या </p><p>हम उसे शुकुन कह लेंगे </p><p>सीने में जरा डर रहता है तो क्या </p><p>हम उसे जूनून कह लेंगे </p><p>बोलना चला जरा कम कर दिया है </p><p>उसे उम्र या लिहाज कह लेंगे </p><p>अब ठहाके नहीं लगाती , तो क्या </p><p>अब शिकायते भी तो नहीं करती </p><p>हमने समझा दिया है उसको. </p><p>और तू भी चुप कर, बस लड्डू खा </p><p><br /></p><p>हाँ , क्यों नहीं </p><p>बस ऐसे ही पूछ लिया।</p><p>मेरा भी नाम लाड़ली था न </p><p>इसीलिए. </p>Prabhahttp://www.blogger.com/profile/09326858743588911999noreply@blogger.com0