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सूरज

घोसलों में जब सुनता हूँ करवटे समझ जाता हूँ अब आना होगा हो सुबह जैसी भी, हो गयी-रात कैसी भी जो छाए हो बादल और पता हो रखेंगे मुझको छिपाकर या जायेंगे भिगोकर मैं नहीं सुनता, नहीं रुकता आता हूँ मैं हररोज़ करता हूँ प्रदख्सिना पूरी देखता हो, सुनता हूँ चुपचाप इस दुनिया का बाज़ार, लाखो करोडो सालो से युगों युगों से, देखता आया हूँ परिवर्तन कभी मायुश, कभी क्रोधित और कभी खुश भी हुआ हूँ लेकिन , चुपचाप मैंने की है बस मेरी दिनचर्या पूरी सोचता हूँ जो होता मैं मानव तो कर पाता कितना कुछ, मैं भी लाता परिवर्तन मैं तो सूरज हूँ पर तुम क्यों बस करते हो दिनचर्या पूरी नहीं बंधे तुम प्रकृति की धुरी से जाओ जाओ वहां तक जहाँ से लौट जाये सबकुछ बस पहुचे खुसिया तुम्हारी और मानव जाती की मैं भी देखूंगा क्या मेरी किरने कर पाती है मुकाबला मैं क्या, बस सूरज