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Showing posts from March, 2012
बड़ा ही मायूस आज ये मन है, हफ्ते भर से सोच मगन है आखिर भूल हुयी है कौन सी, खुद पर अब संदेह हुआ है सच तो है मासूम नहीं मैं, कभी स्वार्थ से कभी मोह से कौन बचा है? बची नहीं मैं लेकिन इतना भी मानो सच है, जिसको गले लगया है बाते चाहे नहीं बनायीं, लेकिन जीवन-ह्रदय बसाया है कोई चाहे कुछ भी कह दे,सुन लुंगी-दुहरा भी दूं लेकिन जिसको दोस्त कहा था, उसको कैसे ठुकरा दूं? शायद मैंने गलत सुना था , या फिर तुमने झूठ कहा? गरिमा, मर्यादा रिश्तो की, रह गए नाहक शब्द भला? गर वो सब था दिखलावा, तो फिर आखिर सच क्या है? कोई मुझको बतलाये फिर इस रिश्तो का अर्थ क्या है? बेमतलब सब कुछ अर्थहीन , बातो बातो पे अग्निपरीक्छा कब तुम कैसी राह धरोगे, ये सब बस तुम्हारी इच्छा? चोट लगी जब सहलाया पुचकारा थोडा फुसलाया और फिर अपनी राह पकड़ ली, ऐसी कैसी रिश्तेदारी? है दम और बिस्वास जरा भी तो फिर दिखला सच्चाई करो सामना, यही वक़्त है, लो अपनी अपनी जिम्मेदारी
जटिल बड़े जटिल सवाल कई जवाब लेकिन नहीं कोई सही जवाब उपयुक्त? लगते से कुछ मुझे लेकिन, वही बे बुनियाद जब उन्हें परखो फिर एक बार भ्रमित, उलझन में खोया सा मनुष्य, परखते परखते एक के बाद,एक और जवाब किसी बिरले की होती है किस्मत भली की लगता है अंक सही पहली या दूसरी बार और समेट मोहरे, मनाता है जीवन का त्यौहार हम तो उन बचे खुचे लोगो की भीड़ में जिन्हे बस उम्र भर जवाब ढूँढने हैं.
है वक़्त कम जज़्बात बिखरे हुए हैं हो रही है घडी एहसास बस में नहीं है देर किस बात की? और लज्दी भी कैसी? सिमटे से दायरों में फैली-फैली जिंदगी.
परछाई मेरी चलती तो हो मेरे साथ साथ क्यों नहीं बोलती कुछ क्यों रहती हो चुप चाप तुमसे करीब और कौन मुझसे तुमसे दूर रहे कोई कैसे गुम हो जाती हो लेकिन, अँधेरा घिरते ही छोडती हो मुझको अकेली , जान के भी की डर लगता है मुझको, हर अंधकार से ख्याल आते है, बेकार न जाने कहाँ से रौशनी की एक किरण से, उठ कड़ी होती हूँ मेरी परछाई, मेरी सहेली, को जो पाती हूँ कद तुम अपना भले बदलती रहेती हो पर सच तो ये है, साथ सदा रहेती हो
आज सुबह उठकर किरणों से रोशन, देखा भीगी घास में उछलते भागते, और चुचाप बैठकर निहारतेएक खरगोश को, लगाते छलांगे तो फिर पूछा मैंने, क्यों क्या तुम भी जागे हो कल रात नहीं आई नींद - क्यों की थी मन में सोच? क्या लाएगी कल की सुबह या भी था डर की होगी या न होगी सुनहरी तकदीर और लाएगी भोर करवट बदलने में भी ये थी झिझक की कही डोलेगा इन्द्र का सिन्हासन और आज ही की रात हो जायेगा सब भष्म किसी तरह से काटी रात दर-दर कर ली हर एक सांस धुप की हर किरण से जगी उम्मीद और आये हो देखने, बाहर भविष्य क्यों किया व्यर्थ तुने ए दोस्त वो स्वपन जो आनेठे कल रात रह गए अधूरे कई ख्वाब जाओ जाओ जी भर के जी लो ये पल क्युकी बस यही तो जो, फिर लौट के नहीं आता
दिल में यु तो आरजुएं हज़ार जो पाती हैं बस इंतज़ार तडपती रूह है हर पल पाने को उनके एक दीदार आँखे खुली हो या हो बंद नज़र आते हैं बस वही छूटती हर लम्हे के साथ उनसे मिलने की उम्मीद ख्वाबो और खयालो में बनाकर एक ताजमहल भरकर सनम को बाहों में हो जाए किसिदीन ये जो अगर गुज़र जाए मुहब्बत का जूनून इस जिश्म से , इससे पहले की बंद हो जाए धड़कना दिल का और रह जाए तरसती रूह सदियों तक हमारे ताजमहल में
सिरहाने रखकर तेरी याद, हर रात हम सोये हैं दुहराते मन में ख्याल, हर एक पुरानी बात भीगे तकियों पे, बदलते करवट उनीदी रात, हमने काटी है चुभते सपनो के साथ, अनगिनत बार ढकते काजल से, जागी आँखों के दाग हर सुबह, आइने के पास झूठी मुस्कान, बस एक उम्मीद और इंतज़ार झूठी ही सही, फिर भी आखिर है तो ये आस टटोलते मन को न जाने किस ख़ुशी की तलाश
होली नहीं मनाई जबसे धुलने वाले रंगों से सात समन्दर दूर हुए, घर से साथी-संगो से झूठ ये होगा अगर कहेंगे, जीवन में कुछ कमी नहीं जब भी ऐसे दिन आये हैं, आँखों में एक नमी नहीं लेकिन सच तो ये भी है की, सबने अपनाया है रिश्ते नए ,नयी दोस्ती , नया परिवार बनाया है होली तो ऐसा उत्सव है, जो ये याद दिलाता है रंग दिलो पर प्रेम-भाव का, धुलने से कब धुलता है?