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Showing posts from May, 2021

भक्ति और श्रृंगार लिखेंगे

हम न थे तो आवाज थे  युगों युगो भी , आवाज रहेंगे  जो लब कभी खुल के कह न सके  वो धड़कनों के आज अल्फ़ाज़ कहेंगे  कौन रोक सकता है भला  इन अरमानो के दरिया को  अँधियो से, बाढ़ बनकर  हम होकर एक गुमराह, धार बहेंगे  मुहब्बत होती है एक बार  तो फिर बदलती कहाँ कभी  जो मौसमो सा बदल जाए  उससे क्या ख़ाक कहेंगे ? उम्मीदों के रंगो ने बेरुखी कर ली  बेरंग आरजुओं ने भी ख़ुदकुशी कर ली  रंगरेज़ सुन ले, अब तेरे ही रंग में  कम्बख्त दिल का हर एक तार रंगेगे  रुसवाई का अब क्या ख़ौफ़  और क्या तन्हाईयो से डर  रूप मीरा का धर  के कृष्ण  जब भक्ति और श्रृंगार लिखेंगे  

राधे राधे राधे श्याम , गोविन्द राधे हे जी राधे.

 राधे राधे राधे श्याम , गोविन्द राधे हे जी राधे.  मॉर्निंग वाक और कृष्णा दास की रूहानी आवाज़ में इस कीर्तन की धुन , जैसे किरणों को और भी तेज़ और भी ताज़ी करे दे रही है. पैर रास्ते पहचानते हैं और दिमाग अपनी बहकी बहकी खयालो की रफ़्तार।  फिर क्या है , कुछ इस तरह भागते हैं ख्याल.  इस कीर्तन की हर लाइन में , राधे पांच बार है और श्याम दो ही बार वो भी एक बार तो नाम बदलकर ? क्यों भला?  कहीं इसलिए तो नहीं की कृष्ण को कई रूप धरने है महाभारत तक की यात्रा में और भगवत गीता की रचइता बनने में , और उधर राधा तो बस एक ही वजह से जानी जाती है. अटूट और अथाह प्रेम।  वैसे प्रेम बिना धैर्य और साहस के नहीं होता , तो जायज है ब्रज की इस छोरी में वो भी कूट कूट के भरा है।  वरना दुनिया ने जब इसकी मूरत कृष्ण के साथ गली गली और घर घर में लगा डाली तो वो चूं भी न करे ? ऐसा साहस और धैर्य के बिना हुआ है क्या भला?  तो फिर क्या था , दिमाग ने रच डाली एक और थ्योरी. कृष्ण और कुछ नहीं बस कर्म और जीवन के प्रत्येक अध्याय की ऊंची नीची होती जैसे एक पर्वत श्रंखला हैं जिसके फाउंडेशन में बहती है साहस धैर्य और अंतहीन सी,  कलकलाती , झूमती ,

मर्यादा

 मीरा की छाती धौंकनी सी चल रही हैं, टांगो के बीच है फंसा एक यन्त्र और स्क्रीन पर नजरे टिकाये नर्स.  जिसका डर है, वही बात है. मीरा की ही धड़कनो की एक प्रतध्वनि से कमरा गूँज उठा है.  बधाई हो , बिलकुल नार्मल और हैल्थी प्रेगनेंसी है  धड़कने और तेज़, गर्दन टेढ़ी कर स्क्रीन पर देखती है. एक काला धब्बा छोटा बड़ा हो रहा है , कुछ अंक इर्द गिर्द डूब उभर रहे हैं।   कौन है ये ? इसको जीवन कहूँ या नहीं ?  ह्रदय विचलित है और आंखे भर भर उलझ रही है।  नर्स चुपचाप अपना काम कर रही है , उसकी तो दिनचर्या है।  २ घंटे के बाद मीरा का नम्बर आया था , उसके पहले न जाने कितने और शरीर और कितनी और धड़कनो की चित्र आंक चुकी है आज ये मशीन.  किर्र किर्र की आवाज और मीरा के हाथ में एक तस्वीर थमा देती है. मीरा अनायास उसे ले लेती है.  अब आप चेंज कर लीजिये और डॉक्टर से मिल लीजिये।  मशीन अब नहीं है टांगी के बीच लेकिन और भी बहुत कुछ तो है ?  क्या करूँ ? कैसे कहूँ ?  उसने तो कह ही दिया था, उसी दिन.  " जाओ देख लो, जो करना है. " इको होती रहती हो वो ठंढी आवाज और उसका किया एक फैसला मीरा के ज़ेहन में..  " मुझे ये प्रेगनेंसी टर

मास्क ज़रूर लगाइये क्युकी बचने में ही भलाई है.

  क्या कोरोना कोरोना लगा रखी है.  प्यार नहीं हुआ क्या कभी ?  ठहरो बताती हूँ.  मुझे हुआ था एक बार.  और वो भी क्षण भर में। आफत ये की , किसी को खबर तक नहीं हुयी, इन्फेक्टेड को भी नहीं.  लेकिन सिम्पटम्स , तौबा तौबा. नींद ख़तम, भूख प्यास सब ख़तम , पसीने - पसीने और धड़कने तो लगता था जैसे किसी ने कलेजा निकाल रेल की पटरियों पे रख दिया हो, जिसपर ट्रैन आती नहीं की कुचल ही डाले  लेकिन लगातार धड़ - धड़ धड़- धड़. बस, ऐसे ही चलता रहा , और सामने वाला एसिम्पटोमैटिक था तो अब किसको दोष दें भला.  हमने भी न फैलाया ये रोग और आइसोलेशन मैंटेन की.  और समझ लिया की इम्यून भी हो गए.  लेकिन देखे , क्या पता अब देश की हालत देख रही हूँ तो लगता है की कहीं , खुदा न खास्ते कोई नया स्ट्रेन आएगा मार्किट में तो फिर से इन्फेक्शन न हो जाये.  तो बंधुओ , प्रेम हो या कोरोना।   मास्क ज़रूर लगाइये क्युकी बचने में ही भलाई है.