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Showing posts from September, 2017
Beauty  That is life As I watch With passage of time  Filling my heart  Taking it in The bliss spills Through my eyes

Scars

Scars Scars that you see Scars the you don’t Scars you can find And those that you wont Scars, silently bleed Scars, those scream Scars left for all long-forgotten dreams Scars, that you stare at Scars, that you admire Many, are a reminder of those unfulfilled desires Scars you may think Are a piece of an art Leaving an enviable pattern mosaic, of the broken heart Dead, Long ago No, it doesn’t hurt anymore If you have any darts? Practice, Practice, some more
स्नेह क्यों यु ही  बिखेरू रेत के टीलों पे जो बरसे अगर  तो सींच सकती है  कितने ही उपवन युग युगो तक
रह रह के नैनो में अब भी दरिया कोई आता है उमड़ बादल ऐसे मायूसी के क्यों ठहरे है घुमड़ घुमड़ तन्हाई खामोशी ऐसे तितर बितर हो जाती है हंसी तेरी बिजली जैसे जब मन में कौंध के आती है खाली खाली सूना सूना इस आँगन का कोना कोना तेरे वापस आने की आहट पाने को चौकन्ना
आय मिस यू कहकर रोने की शकल भेजते और दूसरे विंडो में जोक पढ़ते lol लिखते हाय कितने झूठे ढोंगी हो गए हम लाइफ fairytale है का वॉलपेपर लगाकर दीवारों के सूने सन्नाटे नापते बड़े ही मक्कार और फरेबी हो गए हम मन के अंदर के भवर को गांठ दर गाँठ में लपेटे स्माइली और सेल्फी बाँटते कितने खोखले कितने बेवजह हो गए हम
दुर्गा पूजा और मेरा घर, कोलकाता. मेरे बचपन का घर, अल्हड़पन के दिन सब जैसे बिलकुल घनिष्ट हो इन दुर्गा पूजा के ही दिनों के. पंडालों का तिनका तिनका जुड़कर बढ़ना और स्कूल से आते जाने नापना कौन सा कितना रेडी हुआ. इंतज़ार एक एक दिन का और भगवती के आगमन से जैसे एक नयी जान ही फूंक जाया करती थी, हर उस चीज़ में जिसे मनुष्य प्रायः प्राणहीन समझता है.... सड़के गली मोहल्ले दीवार ... जिधर देखो सब जीवंत. सब की धड़कने गूंजती ढोल में , शंख में , घंटियों में ,उलू में या यदा कदा बाज़ारो के शोर में, सर्वत्र एक ही संगीत जैसे प्रकृति भी कह रही हो 'माँ एशेछेन ' ( माँ आ गयी हैं). माँ का आना अपने घर, अपने मायके आखिर क्यों कर कोई कसर बाकी रखे कोलकातावासी ....बेटियों के स्वागत में. जगतजननी भगवती के साथ, हर घर की हर भगवती को और उनके आगमन को पलके बिछाये हर व्यक्ति विशेष को मेरी ओर से 'शुभो विजया'.
हलाहल तो कंठ में हम भी रखते हैं शिव   उसे ह्रदय तक पहुँचने पर देते नहीं   कड़वी जिह्वा सही पर स्नेह और प्रेम   जहाँ बसते है वहां   सत्य मरते नहीं  
दिल खोल कर इकबार   लुटाई और समेटी है ख़ुशी   बाँध के अब ये पोटली   छिपाकर रखना है सबसे   न कोई चुरा ले न कोई छीन ले मुझसे   तन्हाई में बस चुपचाप   निहारती हूँ उन लम्हो को   जिसकी बाट जोहि, ह्रदय ने जाने कबसे ज़रा और मुस्कराएं हँसे और खिलखिलाएं   जिंदगी खूबसूरत है   स्वयं जाने और बताएं
किसी ने कहा की   रिश्ते तो अब बस   ट्रांसक्शन बन गए   पर सच पूछो तो   वो भी कहाँ बचा है बिज़नेस में तो   मोल भाव दर दाम करते हैं कुछ बेचते है तो मोल दे कुछ   खरीदते भी हैं   बाजार की भीड़   इच्छा अनिच्छा   खाते हैं धक्के घूम फिर लेकिन वहीँ हर बार   आते है.   मैं तो कहती हु आपने रिश्तो को समझा है बुरा सपना   नींद में आये पर जगते ही भुलाते हो   उन्हें रखते हो सच से दूर   जतन से पालते हो डर पहचानते नहीं   तो आखिर ये बचे क्यूकर
বৃষ্টি হলে   আসবে বলে   এলে না কেনো ? বলো তো   কয়েক   যুগের পর   নেমে ছিল   তাকিয়ে আকাশ   আজ কে যে প্রথম   পড়লো জল   আমি গুছিয়ে ঘর   ছিলাম দাড়িয়ে   অশেষ বৃষ্টি   চোখে নিয়ে   আর তুমি তো এলে না?
ख़तम हो गए सारे बहाने सुन मेरे पागल दीवाने   और तुझे फुसलाऊं कितना   बातो से उलझाऊँ कितना   मेरे किस्से बोर हो गए   तेरे वादे शोर हो गए   इश्क़ विष्क की ख़तम मुरादें पर तेरे अब भी वही इरादे   छोटी मोटी कौन करे अब चल बड़ी कोई दीवार गिरा दे  
शब्द भी साया सा मन के अंधेरो में जैसे साथ छोड़   रहा है सन्नाटे काटते भी है पर इस सिलती जिंदगी   के अब वही साथी भी हैं  
हमें भी फज़ूल आदत रही अल्फ़ाज़ चंद लिख कर   पन्ने फाड़ फेकने की   इस कदर आज महफ़िल में तनहा खामोश न बैठते   जो कभी ख़ास एक नज़्म   हमने भी पूरी काश   लिख  डाली होती
आ चलो बरसे मेघा बन आंगन आंगन   थिरके नाचे   चमके जुगनू बन चंचल घन वन   बस रुके नहीं   कोई बांध ले   करके बात लुभावन   फिर सड़ती नाली   और मृत कीट   रह जाये जीवन   आज़ाद करो आज़ाद रहो   है प्रेम जो प्रीतम
प्रेम कैसे करते हैं आकुल हो व्याकुल हो कभी ह्रदय   तो कभी मन के भ्रमो में फंस   अनाप सनाप   रो कर मनाकर   कभी कह कर   फुसलाकर   तो कभी नैनो में   बांध रोक पथ्थर सीने पर   होठो पर कसकर मौन   भी तो कर लेते है प्रेम   और भला कौन सी   पद्धति बाकी है और कैसे करते हैं प्रेम?
हमें कहाँ जचती है भारी परिपक्वता और   सब सही सही   हमें तो हंसी ठिठोली   दीवानो की उलटी पुलटि महफ़िल ही भली