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Showing posts from December, 2017
पापा क्या धूमिल हो जाएँगी स्मृतिया यु कभी कभार बस मिलने से क्या मर जायेगा धीरे धीरे स्नेह न बाते करने से क्या नहीं बचेगा प्रेम न कोई दिलपर अब दस्तक होगी मरने से पहले ही क्या अपने कांधे अपनी अर्थी होगी ? हो जायेगा विकलाँग ह्रदय हाथ पाँव कटने जैसा क्या नहीं बहेंगे अश्रुधार घावों सा रिसता, रिश्ता कैसा? क्या ऐसा भी  होगा अनर्थ होंगे भूत प्रेत से बदतर हम हे प्रभो दया कर हर लेना तब प्राण भी अपने तुम
समेट लो की लग रहा है अब बिखर ही जाउंगी टूटे धागों में बंधी माला नहीं और थाम पाऊँगी हूँ डरी भी हूँ मैं तनहा देखा है अभी अभी उसे गिरके मिटता नहीं होता नहीं होता क्षण क्षण अब ये खुद से झूठ ही कहना की उम्मीद है कुछ पल और टिके रहना
তোমাকে চোখের সামনে পেয়ে অনেক কিছুই যে বলে ফেললাম পরে দেখা হোক বা না হোক কে জানে তবুও কেন যে কত কিছু বলার রয়ে গেলো কুলবুল যে করে কেন নিরন্তর কে জানে