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Showing posts from December, 2016
सासो की सांकल चढ़ी रखी हैं कालकोठरी में तन की दिन काट रहे हैं न झांकती है कोई किरण रोशनदानों से शीलन घुटन से तनहायी बाँट रहे हैं उलझ पड़ते है बदहवास हो मिज़ाज़ खुदबखुद कोसते कभी , कभी खुद को , डांट रहे हैं ठहरे से दायरे में कहाँ जायजा वक़्त का आसुओं की धार से इंतज़ार , माप रहे हैं
साथ अपने जैसे हवा भी बांध ले गए दम घुटता है न सांस ली जाती है चित चकोर मन मयूर मृगतृष्णा मन को कोई भरमाई जैसे सुख चैन बावली हरे जाती है
इंतज़ार रुखसती फिर इंतज़ार हिज़्र की रात तौबा उफ़   यु नमी पी लो नज़रे मिला के मुस्करा लो इश्क़ बन गया तकल्लुफ ?
चूल्हे में जाय ख़ुदारा ये नाकारी मुहब्बत की जब भी खोले बटुए इसने उछाली कानी कौड़ी लगा के इसको कलेजे से कितने आंसू बहाऊँ ? की नहीं मेरे किसी काम की , बद्ज़ात निगोड़ी चल हो दफा दुबारा दिखाओ न शक्ल कही दिल मचल गया तो फिर न रोक पाऊँगी जल जल मरूँगी खुद तुझे भी इसी में झोंक जाउंगी
ओ बादलो   बरस के जाओ मेरे अंगना   में आज   के जी भर के भीगना   है गरज भी   जाना की कोई न सुन पाए   कलेजा चीर एकाकी मन को चीखना है   मुस्कराती रहूंगी   मैं , फैला के बाहें   बस बरसेंगी यहाँ   तुम संग निगाहे निचोड़ के आँचल समेट के मैं पल्लू   तेरे संग आज कुछ ही पल   मैं , मैं तो बन लूँ  
फेरे तो नहीं थे पर निभाए गए सारे वादे नहीं कोई पर तुम हरबार आये इश्क़ है , ये मन ये तन रूह जान चुके थे पर लिबासे जिंदगी हम ओढ़े ढांप रहे थे सिकवे नहीं , हम आरजू ले जी भर जिए हँसते रहे हम रूबरू मुस्कराये , जब याद किये

कैसा होता सुनहरा सपना

अब कहाँ मैं कभी ये जान पाऊँगी की कौन सी बात मेरी तुमको याद रह जाएगी क्या हंसी वो होगी मेरी या होगा मेरा , इतराना या तुम्हे बेकरार कर जायेगा बेवजह , बस उलझना मेरा आंसुओ को छिपाना ये बता देना , की प्यार है या तुम्हारा ये जान लेना की , मुझे इंतज़ार है वक़्त का रेत सा फिसल जाना लाजमी है , कैसे भला किसे याद हो लम्हो का ठहर सा जाना जब जब , तुम्हारा साथ हो बरसो की साध और   युगों का स्नेह अपना न अब जान पाऊँगी कैसा होता सुनहरा सपना
बहक बहक लहक लहक चाँद तुम रात भी तुम बाँध कर   बाहो के अंधेरो में आज तुम लिख जाओ एक फ़साना   की कुछ न रह पाए बाकि सासो में मेरी साँसे आँखों में मेरी आंखे दरम्यान ज़ाम खाली
माफ़ कर दो की बिन तेरे जिया नहीं जाता लम्हा कोई तेरी याद बिन कहाँ है गुज़रता माफ़ कर दो वैसे इसके काबिल तो नहीं मैं तेरे दर्द तेरे चैन कही , शामिल तो नहीं मैं लौट आओ या कह दो चल पगली , बहुत हुआ चुप रही हु , हर पल दिल से निकली है दुआ फिर से बस एक बार कह दो हर शिकायत रिश्तो के मामले में बनती है , इतनी तो रियायत माफ़ कर दो आखिरी बार न होगी कोई अगली बार
जिंदगी तो राह है कोई मंजिल नहीं चले साथ जबतक मौत हासिल नहीं क्यों न भीड़ से गुज़रे कतरा कर के क्यों खो दे खुशिया घबरा कर के क्यों ढलका दे नैनो से सपनो को हम वक़्त ही घाव है वक़्त ही मरहम
दिल थम सा गया है , बस इस ख्याल से आंखे भरी है फिर , अनगिनत सवाल से तुम कही चले गए तो , हवा क्या बाकि रहेगी एक मौसम सावन , और झड़ी ही लगी रहेगी
ऐसी भी कौन सी , खता हमसे हो गयी की न बात करते हो , न लेते हो खबर ? आज तो सुनाओ , जी भर के हमें कोई कहानी इस खामोसी ने कर रखा है , बेसबर      
कोई दवा कोई मरहम न करे है असर , ये कैसा मर्ज़ ?   चलती सांसे पर धड़कने जैसे , उसी का दिया क़र्ज़ न जलने से जले न बुझे , क्यों कर लगी ये चिंगारी हमने तो कभी न निभाई तू ही कर , अब तेरी बारी
ख़ुशी एहसास तुम्हारे होने का बाकि तो सब बेमानी उदासी बासी
लाख खा   लू मैं कसमे वादे भी खुद से कभी अब ये ऐसा फिर नहीं हम करेंगे नहीं नाम लेंगे न देखेंगे चेहरा न वास्ता तुझसे अब हम कोई रखेंगे   पर एक आहट पे तुम्हारे बदल जाते हैं मौसम आखिर बार फिर से दिल ये गुस्ताखी करेंगे बस एक आखिरी बार ?