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Showing posts from May, 2012

बस हाथ थमने से

मेहँदी से लिखी मैंने और आंसुओं से मिटाई कहानी मुहब्बत की दास्ताँ सपनो की धुलकर जो सामने आई मेरे हाथ की लकीरे टेढ़ी मेढ़ी और उलझी उलझी भाषा जिसकी न मैंने समझी ना की कभी तुमने कोशिश बस बंद करके मुट्ठी चलते रहे हम, इतना न समझे की जुडती हैं लकीरे बस हाथ थमने से
बस दो बात समझ में आई है और लगता है अब कुछ समझने को बाकी नहीं है की गुज़र जाता है समय, जिसके पीछे हम भागते है और रह जाती हैं बस यादे जिन्हें हम पूछते तक नहीं मायूसियो के लम्हों में और जब हो तन्हाईयाँ समय तो स्वार्थी बनकर बस यु ही चलता रहता है यादे पुरानी , भली या बुरी हो देती है ठंडक, बनकर पुरवाईयाँ तो बस आज से मुझको नहीं भागना है बेकार ही नहीं करनी कोशिश, बंधने की समय को बस बुनने हैं ताने-बाने में ऐसी यादो को जो रहे हर पल इस दिल के करीब, अपने बनकर

छोटी सी चींटी

छोटी सी चींटी , छोटी सी चींटी चढ़ती उतरती और गिरती पड़ती लेकर उम्मीदे और बोझ दुनिया भर के की कर लुंगी सबकुछ, जाउंगी पहुँच मंजिल दूर सही, पर मैं मायुश नहीं छोटी सी चींटी ,छोटी सी चींटी उडती गुजर जाती है एक तितली देखती है निचे, रेंगती सी चींटी करती है अनदेखा उसकी अनथक कोशिस पल भर को चींटी भी सोचती है की काश मैं भी उड़ाती लेकिन नहीं भूलती वो फिर भी चढ़ते रहेना न ही छोडती है पीछे , वो बोझ पीठ के कितने बड़े काम करती है आखिर कौन कह सकता है भला उससे? छोटी सी चींटी छोटी सी चींटी !