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Showing posts from November, 2012

जरुरत

हो गए बहुत दिन,बहुत दिन हो गए भूल गयी लगभग खुशबु उस आँचल की याद नहीं अब थपकी सर को उन हाथो की स्वाद कैसा होता था, उन निवालो का जो गुजरती थी, मेरी माँ की उंगलियों से कैसी खनक थी , उन चूडियो की जो रसोई से चलकर, आँगन तक आती थी कैसी थी वो नजरे जो देखती ही नहीं कह देती थी सबकुछ , जो मन चाहता था चट्टानों सी जो यु तो सब कुछ झेल जाती थी एक खरोच पर मेरी, आंखे उसकी नम होती थी जानती हूँ आज , जब वो मुझसे होकर गुजरी है कहाँ हो तुम की आज फिर तुम्हारी जरुरत है
ये होड़ कैसी, ये दौड़ कैसी हर बात पे क्यों ये प्रतियोगिता कौन जीता और कौन हारा दाँव पर क्यों सबकी योग्यता न तू ऊँचा ना मैं नीचा मेरी तेरी अपनी क्षमता मान लिया, भई जान लिया किसकी किसमे कितनी दक्षता पन्ने पन्ने तो भर डाले कर लेखाचित्र और मूल्यअंकन पर उन बातो को क्या होगा जो व्यर्थ हुए यु ही पल-छिन

जिंदगी बाँटते हैं

जीवन क्या लम्हों की माला है जब हम बीते लम्हे चुन लाते है बीती बाते दुहराते हैं बातो बातो में नमी कहीं और पल भर में कहकहे लगाते हैं ये बात नहीं, सिर्फ साथ नहीं हम-तुम, जिंदगी बाँटते हैं
रोशन रोशन सी सुबह आज मद्धम मद्धम सी हवा कहीं हैं क्या ये आहट तेरे आने की जाने क्यों मन को ऐसी शुबा हुई