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Showing posts from January, 2019
तन्हाई खाये  खाये जाती है  फिर भी महफ़िल और मेले हैं  कितने संगी कितने  साथी  सब अपने, फिर भी अकेले हैं  छोड़ कर जो आँचल उड़ चले  जो घोंसले से हैं मुड़ चले  खोये खोये ये सारे दीवाने  अब ख़ामोशी से हैं जुड़ चले  पैमानों में चेहरे दीखते हैं  खाली हैं  रूह से, बिकते हैं  चिकनी गेहूं के पिसे हुए  अब हर तवे पर सिकते हैं  जब होती है कोई तड़प कहीं  मुँह ढाँप के हम रो लेते हैं  सपनो को रख कर सिरहाने  ले नशे के दम , सो लेते हैं