Posts

Showing posts from June, 2019
Hope Yes, you gave me some And hope the butterfly Sees a new day At least the Monday And jump over the rainbow Hope to meet you By those train tracks again Once in a blue moon Hope Are you still there ?
क्या और कैसे  जोड़ेंगे कभी ? ये दो थोड़े टूटे से  कांच के बर्तन  क्यों और कब  भिगोने लगे  मेरे मन को , वो जो  करते हैं तेरी आंखे नम  क्यों हम सुनने लगे  खामोशियाँ एक दूसरे की  जुड़ता सा गया नाता  सच,मेरी कसम 

सुबह से शाम कर ले

कहो तो भला, दूर कितना आये हैं?  और कितना सफर है यु ही साथ में  कुछ वक़्त तो अभी गुज़रा लगता सा है  ऐसा हल्का सा, आया क्या हाथ हाथ में ? क्या हम यु ही दूर तक चलते रहेंगे ? क्या हमको नहीं कोई रोके-टोकेगा? हवा बारिश बिजली धुप सर्दी का झोका  क्या थपकियो जैसे बस सहला जायेगा?  क्या तुम और मैं ऐसे गुमनाम साये से  करते करते ठिठोली, जीतेंगे हर बाज़ी? क्या तुम न पूछोगे? क्या हम न चाहेंगे ? कभी हमने कही ठान ली कोई मनमर्ज़ी?  बोलो न कभी क्या ऐसा न होगा ? कहकर जहाँ से , तुम्हे अपना कर ले ? न मैं मुड़  के देखु , न तुम अश्क़ रोको  तेरे बाजुओं में , ख्वाहिशे तमाम कर ले  मेरे चाहतो  में, सुबह से शाम कर ले  
आकाश तो कब से इस चुप्पी को तोड़ने में लगा था. जब जब वो आवारा बादल गुजरता था, कुछ बूंदो से सींच जाता था उत्सुक पर चुप चाप सी धरा पर.  धरा नहीं जान पाती की वो इस बेमौसम बारिश का इंतज़ार सदियों से कर रही थी. ऐसे ही तो बीज़ पनपा करते  हैं,फूल खिलते  हैं,बाग़ सजते हैं और उनपे झूले लगते हैं .  वही झूले, सफ़ेद चादरों वाले जिनमे हर बर्फ पिघल जाया करती है फिर ये कौन सी चुप्पी है जो न टूटेगी.  लेकिन,धरा की नियति इंतज़ार है बस.  बरसेगा तो बादल ही और तब बरसेगा जब बादल का जी भर आएगा. 
कौन हो तुम ? सच  हुए अनदेखे सपने ? या बेमौसम की बरसात भोर की रोशन किरणे या जगने वाली रात या हो आँखों का काजल तुम जो बहने जब तब लगता है या हो तुम मेरे सीने का तिल जिसे जतन से छिपा रखा है या हो मेरे हाथ की रेखा या हो बस एक कौतुहल मन के कोने कोने को सींचे तेरे  अरमानो का जल आखिर हो कौन तुम?
रोशन से सितारों की एक रात ज़रा बहके बहके और हालात चांदनी ज़ोर पर धड़कने शोर पर यु ही, खामोशियो भरी हर एक बात बेबसी भी बेकली भी अनकही अनसुनी भी फासला भी हौसला भी हिचक सी, बेहिचक भी कच्चे धागो में बंधे पक्के जज़्बात कह कर भी कुछ कही रह गया है मिलके  जैसे,फिर से कुछ खो गया है टंगे  है हर  कोने में एक सवाल बिखरे बिखरे, चुभते चुभते हालात
न मंजिले खबर रखती हैं  न राहो को पड़ी है  की अगुवाई करे वो  सफर का तुम्हारे  कदम ये  तुम्हारे  जिधर ले चले  चले जाना, और क्या पता  इक गलत मोड़ ही  खड़ा होगा तुम्हारा  कोई, सही हमसफ़र  जो कह दे वो चलने  या चल दे पीछे पीछे  और दिल उलझ सा गया हो  तो आने देना  क्युकी,न राह की कमी है  न मंजिलो की कोई हद हैं  सफर ये एक तेरे और तेरे  इस हमसफ़र भर की है 
न क़र्ज़ हूँ न फ़र्ज़ हूँ न तेरे दिल का मर्ज़ हूँ न शर्त हूँ न हर्ज़ हूँ न आरजू की गर्त हूँ जो तेरी धड़कनो ने गायी मैं उन धुनों की तर्ज़ हूँ वो जो एक जैसे सिसक थी? महज़ वही तो मैं दर्द  हूँ 

कहता है आवारा बादल

मौसम-ऐ-इश्क़ है अब यहाँ  सावन की घटा बन के आ  सैलाब-ऐ-अश्क़ आये इससे पहले  बारिश की फुहार बन के आ

क्या मैं धुप में पाऊँगी सम्हल

क्या कभी ऐसा सोचा  भी था ? क्या कभी यु हुआ था शुमार ? ऐसे बादलो से रंग बरस पड़ेंगे  और फिर न टूटेगा खुमार  ऐसे सिलसिला कही का कही  लेके जायेगा हमको साथ साथ   ख्वाब और हकीकत के बीच  बिखरे बिखरे से होंगे जज़्बात  जी तो करता है आके चूम लू  फिर ये डरता है ,अगले ही पल  कही बारिशे तभी जो थम गयी  क्या  मैं धुप में पाऊँगी सम्हल 

हमें तो दूर जाना है

अभी तो सीधे सीधे रास्ते आकर मिले हैं अभी तो जानी पहचानी सी आहट सुनी है अभी कहाँ हुआ है वक़्त सवालो में उलझने का अभी तो बस उंगलियां ही उलझ जाएँ उंगलियों से तो थोड़ा कट  जाये सफर हंसी सी आँख में हो और दिल में तितलियाँ उड़ती अभी तो बसंत आया ही है क्यों हम बाँध के डेरे करें शीत की तैयारी अभी थोड़ा उड़े थोड़ा गिरे थोड़ा नजर का नजरो से मिलना और धड़कन का बहक कर के सम्हलना भी तो होने दो अभी तो दूर जाना है हमें तो दूर जाना है 
बड़े  ज़ालिम हुआ करते है वो जो जूनून पाल कर खुद ही अपनी नींदे आप ही हराम करते हैं सच  ज़ुल्म ही तो है जो ज़माने भर की जंजीरे में जकड़े भी मुहब्बत की जरा सी आरजू में ही सुबह से शाम करते हैं उफ़ खुदा, खौफ करे इन से की इन्हे न तो मौत का है डर ख्वाहिश की नुमाईश ये सरे आम करते हैं
एक ही पल में भला कैसे कुहासा घुल गया चाँद वो अब आसमान से  बूँद बन झरने लगा लगी कैसे दौड़ने इतनी बिजलिया एक संग किसने की आजाद देखो  तितलियाँ हर एक रंग ऐसा सुना था, पढ़ा भी था पर पहेली सी ही थी किसकी बातो भर से अब एक हिरनिया, कस्तूरी हुयी धड़कनो में अफरा तफरी नदारत नींद भी अब नैन से किस तरह मैं ठहर जाऊं इस पल में, अब बस चैन से रोक लूँ सब कुछ एक पल भी पलक झपकाऊँ न ये गया की वो गया कही लम्हा ये खो जाये न लो कह दिया हमने जो कहना था सुनो या न सुनो कल की चिंता किसको अब मैंने तो अपनी जी सी ली 

कहाँ तलक ये रास्ता

कभी दो पल बाँट लिए कभी तो कोई बात कभी कर ली एक लड़ाई फिर उसी पल सुलह इससे ज्यादा मुझे नहीं पता कौन सा वास्ता ? कभी मैंने  सुन ली हर अनकही तेरी कभी तुम समझ गए मेरी चुप्पी इससे ज्यादा मुझे नहीं पता कौन सा रिश्ता ? राह यूं टकरा गए चलते हुए कही कुछ कदम संग चल लिए लिए हलकी सी हंसी इससे ज्यादा मुझे नहीं पता कहाँ तलक ये रास्ता ?
न वायदे हैं  न कायदे हैं  न ही रवायतें हैं  तुम हो  मैं हूँ  और इश्क़ की  इनायतेँ हैं  न शिकवे    हैं  न शिकायते हैं  न जज़्बातो की  किफ़ायते है  तुम हो  मैं हूँ  और इश्क़ की  इनायतेँ हैं