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उज्जवल प्रभात

घनघोर घटायें कितनी हो कुछ बादल के आ जाने से होता न मलिन उज्जवल प्रभात   नयनो में तुष्टि ह्रदय में आग ले , पथ प्रशस्त और तेज़ भाग   हो शिव तुम्ही ब्रह्मा भी बनो भष्म ले लपेट सागर मंथन भी हो   है संदेह कोई तो क्षण भर में फेक पीछे अब न मुड़ बढ़ , आगे देख
आज़ाद हो परिंदे की वो आस्मां तेरा है पर खोल के तू उड़ जा सारा जहाँ तेरा है बंद कर के आंखे छू सरसराहट हवा की किसी से , कुछ से क्यों डरना जब उड़ान भी तेरी है और गिर पड़ना भी तेरा है
मुहब्बत वो दास्ताँ जो कही ख़तम न हो जाये कॉफ़ी के प्यालो से सीधी , रगों में घुल जाये   मीठे और सुलगते लब्ज़ यु ही बिन बात पिघलते हैं वक़्त की दहलीज़ पे दिल के काफिले सोते हैं   कहे अनकहे , किस्से बेवाक बयां करते हैं तन्हाई में महकती वजह को ही इश्क़ कहते हैं
कुछ मौसम में है हवा में भी है कुछ सरगोशी सी है जूनून का शोर छिपी है चाहत की ख़ामोशी भी
ज़रा और मुस्कराया करो ज़ोर लगा के ही सही की सिकन माथे की नहीं गालों के गड्ढे फबते हैं   गहरी सासो में महसूस कर लो हँसी , ये जिंदगी की धागे कच्चे हो तभी रंग पक्के चढ़ते हैं   धीमे धीमे सही , यु ही थामे चलते चलो की पाँव तनहा नहीं तो फिर कहाँ थकते हैं
मुट्ठी में कस के आरजुएं भागते रहना की उन्हें संजो के रखेंगे इंद्रधनुष के नीचे अनदेखा कर धूप और बारिश आंखे मीचकर दम घोटना सपनो का मुट्ठी में हाफना बस भागना सीधे जीना तो नहीं