Posts

Showing posts from November, 2016
कहा गुनी कहा करो तुम और सुने हम की जब कह न पाओ तो गुन सके की कहते तो क्या कहते
सुबह से ही शाम की एक मुलाकात का इंतज़ार होता था इंतज़ार का चेहरा , आईना सा , मुकम्मल सुकून होता था
पंख के लगा के यु उड़ चलता है मनचला मन ये मेरा नहीं देखता रस्ते में कौन सा कही का बाँध टुटा करता हवा को महसूस लबो से मूंद करके पलके दायरे कौन से लम्हे मोतियों से ढलके बढ़ चले बढ़ चले मिलो दूर सदियो पर परिंदा एक परवान हज़ार
सूरज अभी अभी भेजा है तुम्हे दुआओ और मिन्नतों के साथ जो आये वो तो नज़र उतार लेना और मांग लेना कुछ भी विश्वाश के साथ आता ही होगा किसी भी पल रंग आस्मां का तुम्हे अंदाज़ा दे देंगी हम वहां नहीं तुम यहाँ नहीं पर रौशनी ही रौशनी हर तरफ होगी
जले   ज्योत हो उजागर आज भी   कल भी अपना   चीर अन्धकार   कर पुकार   रौशनी   रौशनी प्रकाश हर प्रकार   अन्तर्निहित   कोटि ज्योति पुंज   आज हो प्रकट   हे मनुज   दीप हाथ   ले दीप साथ ले दीप रख ह्रदय   दीप माथ ले दीप तुष्टि में दीप सृष्टि   में   सर्वत्र दीप दीप दृष्टि में   बना पांत   हो हमजोली   सब एक ज्योत   इस दिवाली  
भूले तो नही थे पर ये याद रखना भी तो नही हुआ दुवाओ मे शामिल थे पर, लबज़ो मे कहना तो नही हुआ देर ही सही अब तो कबूल कर ले जहाँ रंजे इश्क़ था उन गलियो से जो गुज़रे, तो ठहरना नही हुआ