यु ही पीछॆ पीछॆ तेरे चलते आये पार करते अन गिनत गलियाँ कितने ही चौबारे बड़ी दूर आकर जो नजरें घुमाइ तो सब्कुछ था अंजाना बिन एक तेरे, निशान कदमो के अब क्या सोचूँ, और करूँ भी तो क्या चलने लगी फिर से तेरे पिछे मैं नज़रे झुकाये
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