Kehna sunana

ऐसी भी क्या बात थी
की केह ना सके हमसे
क्या होता जो केह भी देते
डर था?
इस बात का की दूर चले जाएँगे हम
वो तो देखो हम आ ही चुके हैं
क्या हो जाता - केह भी देते
सुन भी लेते
कहने को शायद हमने भी कुछ सोचा होगा
ये ना सोचा?
बस सोचा अपना अपना..मेरा क्या?
समझाओ मुझको
क्यू ?

Comments

Popular posts from this blog

मर्यादा

प्रेम - तलाश ख़त्म

वट सावित्री