Man Ka Kamra (The Sacred Corner of my Heart)

मैं और मेरी तन्हाइयो की दुनिया
हसीन लाजवाब-बस मेरे ख्वाब और ख़यालातो की दुनिया
जैसे की एक बंद कमरा उँची छतो वाला.
साफ़ ठंढी उजली फ़र्श
और सिर्फ़ एक खिड़की
जिसमे से हर वक़्त आती हो बस छनती धूप.सुबह हो या रात
सूरज की वो एक किरण,ठीक उसी तरह
आती रहती हो जैसे
और उसमे मैं एक-तन्हा देखूओं चारो ओर
दिखे बस एक दीवार बस उतनी ही हो मेरी दुनिया
ना सुन सकू मैं कोई और आवाज़
सिर्फ़ ख़ुद को सुन सकूँ काई लबज़ो मे
बटूँ अपने घम और खुशियाँ मैं बस ख़ुद से
ख़ुद ही सुलझाऊ अपने मन की उलझन
कह दूं हर वो बात जिसको कहने से पहले ना सोचू
की क्या बनकर ये सब्ड़ हथियार गिरेगा फिर मुझपर
धुएँ से उड़ जाएँ मेरे अपराधहबोध
एक छोटे बच्चे सा साफ़ निश्चल मन लेकेर
मैं आऊँ बाहर अपने मन के कमरे से
और भूल जाऊ वो सब ज़ो छ्छोड़ के आई ऊन बंद दीवारो मे
जबतक फिर भर जाए मेरा मन
और छ्छलक आए मेरी आँखे
तरस जाए मेरी रूह सुनने को किसी अपने की आवाज़
की कही है ही नही
है तो बस मेरे मन के बंद कमरे मे.
जहाँ मैं हूँ और है मेरे गूँजती तन्हाइयाँ

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