Shabd(A poem About Words we say with lost emotions)

शब्द , शब्द शब्द
शब्डो के जाल मे उलझे उलझे हम सब
देखकर उन सबको मुश्किल समझना
कौन सा था सवाल और कौन सा जवाब ? किस बात का कौन सा था जवाब ?
भूली बिसरी बाते कहने की - सुनने की ?
अनकही और अनसुनी..
ऐसी बाते जिसको कहने की कोई वजह नही शायद
ना उनको सुनकर मिलने वाला सुकून
ये शब्डो के ब्स मकद जाल
और इनमे उलझे मान के वो बाते
जिनको कहनी की कोशिश थी
जो बात किसी ने कही नही
जो बात किसी को सुननी थी-पर सुनी नही
कहने वाली - सुनने वाली कितनी बाते

पास सारी की सारी बाते उलझी उलझी शब्डो मे
कुछ सोच नही पति
मैं वो रा ह कोई की लोग कहे और सुने वही
की कहा-सुनी ना हो हम समझे बाते अपनी और उनके मन की
वो बाते जिनका कोई अर्थ है
ना की वो बाते जो बाते ही नही है
शब्डो के जाल.

Comments

Gajendra said…
Prabhaji,

I came through your blog and am humbly inviting to write for ‘VIDEHA’at http://www.videha.co.in/ Ist Maithili Fortnightly e Magazine. You can send your rachna/alochna to ggajendra@videha.co.in/ or ggajendra@yahoo.co.in/

Sheeghra uttarak pratyasha me.

GAJENDRA THAKUR

Popular posts from this blog

मर्यादा

प्रेम - तलाश ख़त्म

वट सावित्री