Disguise of self

चेहरो पे चेहरे
नक़ाब और नक़ाब
छिपते फिरते हैं ख़ुद से ही
हम अपने आप
कितने पेहलू
कितने चेहरे
एक इंसान के
पल पल बदलते रंग हम
हालातो से - लोगो से
छिपाते अपनी ही एक पेहचान को
दूसरे से
दूसरे को तीसरे से
और कितने ही - अनगिनत
कई बार ऐसा भी लगता है
की इनमे गुम चुका है
असली और नक़ली का फ़र्क
अब बस खो चुके है
अपनी ही पहेली मे हम
भटकते
अपने ही बनाए चक्रव्यूह मे
अभिमन्यु के तरह
बिंधते तीरो से
समय के खंजरो मे घिरे
हताश और घायल
ढूंढते ख़ुद को
एक रास्ता बाहर का
इस भूल भुलैया मे मन के
खोए
उलझे
नक़ाब कई

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