खॊलॊ अन्खॆ और दॆखॊ तॊ

यु हि जॊ सब कुछ
छूटना था
मॆरॆ हाथॊ सॆ
तॊ क्यु लगायी आस मैनॆ
क्यु दॊडी यॆ अन्धी दॊड‌
किस उम्मिद सॆ
उसकि कैसी आस जॊ ना मॆरा था
ना हॊनॆ वाला था
बॆवकुफ सी
भागना पिछॆ मरिचिका कॆ
इस् आस् मॆ इक प्यास मॆ
अब और नही बस और नहि
जॊ गया सॊ चला गया
जॊ है अब उसकॊ जीनॆ दॊ
मुझकॊ अब मॆरा प्याला दॊ
जीवन अम्रित पी लॆनॆ दॊ

Comments

सुन्दर कवितायें हैं। हिन्दी में ही लिखिये।

Popular posts from this blog

मर्यादा

प्रेम - तलाश ख़त्म

वट सावित्री