अपने घर.

किसी दिन जो फ़ुरसत मे आएँगे अपने श ह र
ढोलो के शोरो मे और उसी भीड़ मे एक दिन
खोने को , आएँगे
बड़ी फ़ुरसत मे लेकिन.
उस दिन.
ना होगी मुझे जल्दी , फिर से वापस आने की
चलता रहेगा कार वा पीछे हमारे फिर भी
होंगे तन्हा - अनजाने सो अपनो मे
ढूंढेके निशान अपने ही क़दमो के उस दिन
ये भी ढुंडेगे की कितने ढुंधले वो हो गये है
फिर कभी कही किसी इक रोशनी मे
जो दिख जाएगा एक जाना-पेहछना कोई
खिल उठेगा दिल - होंगी बाते नयी-पुरानी
तब तक - जब तक रात ढलेगा आएगे नया दिन या फिर
भर जाए अपना दिल.
आएँगे कभी फ़ुरसत मे
इन्ही दीनो मे एक दिन
अपने घर.

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