मोरनी

हो ना हो
थी मैं इक मोरनी कभी
वरना क्यू नाचता मेरा मन यू
देख कर बादलो को
होकर बेकाबू - पागल सा मेरा मन
होती बरसातो मे भीगता
बिन बरसातो मे - तरसता मेरा मन
मोर सा.
फिर रोकति मेरे कदमो को
मेरी ही शर्म
खिचती मैं पाव पीछे और छुपाते
खुद को खुद से
हिचकिचाती - औतती अपने जंगल मे
लौटते बादल ब र स क र मेरे वन् मे
जाती बरसते देकर पानी मेरी आँखो मे
और फिर आशाओ मे बरसातो की
प्रतीक्षा करता मेरा मन.

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