प्रत्युश

मुस्कुराहट तेरी
बिखरती तेरे चॆहॆरॆ पर‌
कुछ् ऐसॆ जैसॆ बिखरता रङग शाम का
ढलतॆ सूरज कॆ साथ‌
हॊठॊ सॆ तॆरॆ छुटती हन्सि
शर्माती सी आती है तॆरॆ गालॊ पॆ ऐसॆ
जैसॆ ऎक गुलाबे रङ् छुटा है
पिचकारि सॆ
और शरमाता सा तॆरा चेहेरा
झुक सा जाता है
प्रत्युश
मै तॊ तॆरी मा हू
मुझसॆ क्यु शर्माता है?

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