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तुमसे कोई भला कैसे नाराज़ कही हो सकता है
पास आकर तुम्हारे, तुमको खोने का एहसास होता है
गहेरे पानी की झील से तुम, बिन ल़हेरो के, शांत रहे
मैने जाने कितनी कोशिश की, कितने ही पथथर फेंके
क्यू सूनापन , क्यू इतनी उदासी फिर मुझको घेरे है
मैने खुद ही ये राह चुनी, कहने को रस्ते बहुतेरे थे
मैं हाथ जोड़, गिर कदमो पर तेरे - अधिकार नही कुछ माँग सकू
तकदीर मेरी बस इतनी है, अंतिम छणतक तेरी ही बाट तकु
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