praket


praket
Originally uploaded by prabhaJha

चारो दिशाए, उझलति रोशनी
पलके मेरी अभी तक उनीदी
बढ़ाकर हाथ, छूता मुझे
तेरा कोमल शरीर
कहती कितनी ही बाते
भाषा अपनी तेरी
सपनो को छोड पीछे
भर के बाहो मे तुझको मैं होती आकेत
आज भी और आजीवन्, प्रिय प्राकेत

Comments

Unknown said…
opsssssssssssssssss.so adorable.so cute.i wish i would ve a son lyk urs.

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