नदी

ऐसी नदी हू मैं
जो सीचे कांटो कुशो को
बीहड के खलिहानो को
दूर किसी कोने मे धरती के
गिरू पहाडो से मैं करती गरजन तरजन
धरसायी करती चटटानो को मैं
बहू वेग मे
कोमल और सुरिलि धारा करती कल कल
मैं नही जानती
उद्दनड जानवर भागे कुदे कुचलते मेरे सीने पर
सापो और विहनगो को मैं दू जीवन धारा
ऐसी एक नदी
एक निरझर की
मैं बहू और कोयि सिने नहि
जने नहि कि कहा बही और कहा गयी
बस जाने मुझको वो कांटे और वो सर्प
जो और कुच नहि जानती
मैं उनको और वे मुझको
अपने ही अनधियारो मे

Comments

Naveen Joshi said…
Bahut Sunder

Maa Saraswati ki krupa bani rahe

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