उलझने ही उलझने दी हमको प्यार ने तुम्हारी
पर अब हो चली है मन को इनकी ऐसी आदत
की न हो गर तो सूनापन घिरता है बदलो स
और अज्न्जान सा लगता है मुझे ही मेरा मन

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