कठपुतली सी मैं तुम्हारी उंगलियों के बीच
अनगिनत ही नाच दिनरात नचाती है
भावनाए मेरी , कब मेरी हुई हैं
बस बाते तुम्हारी, रुठती और मनाती है
कहने से तुम्हारे ही छाते हैं बादल
और ये पागल मन मेरा मयूर बन नाचता है
छिप जो जाते हु तुम बदलो में चाँद बनकर
चकोर बन ये निष् दिन तुम्ही को ढूंढता है
तोड़ कर ये सारे बंधन छूट जाऊं भी तो कैसे
की धागों से तेरे, मेरी सांसो का रास्ता है

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