खुशहाली पकाओ

चलो सुलझाए कोई आज गुत्थी
रिश्तो की गांठे
गिरहे तेरे-मेरे मन की
रसोई में घर की
हाँ लगेगा बहुत सारा वक़्त
और धीरज भी लाना होगा
थोडा हल्का सा मन और
मुस्कराहट से सजाना होगा
परोसेंगे आज रात थाली में
सुलझा सा मन और कुछ मीठी यादे
कहकहो की लस्सी और सुलगती सी बाते
कड़वा और तीखा आज की मेनू से हटाओ
ऐसे ही अब घर में खुशहाली पकाओ

Comments

Rita said…
good job Prabha..Keep it up
Padmini Di
dollyjha said…
I loved the simplicity of the poem

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