आज सुबह उठकर किरणों से रोशन, देखा भीगी घास में
उछलते भागते, और चुचाप बैठकर निहारतेएक खरगोश को, लगाते छलांगे
तो फिर पूछा मैंने, क्यों क्या तुम भी जागे हो कल रात
नहीं आई नींद - क्यों की थी मन में सोच?
क्या लाएगी कल की सुबह
या भी था डर की होगी या न होगी
सुनहरी तकदीर और लाएगी भोर
करवट बदलने में भी ये थी झिझक
की कही डोलेगा इन्द्र का सिन्हासन
और आज ही की रात हो जायेगा सब भष्म
किसी तरह से काटी रात
दर-दर कर ली हर एक सांस
धुप की हर किरण से जगी उम्मीद
और आये हो देखने, बाहर भविष्य
क्यों किया व्यर्थ तुने ए दोस्त
वो स्वपन जो आनेठे कल रात
रह गए अधूरे कई ख्वाब
जाओ जाओ जी भर के जी लो ये पल
क्युकी बस यही तो जो, फिर लौट के नहीं आता
उछलते भागते, और चुचाप बैठकर निहारतेएक खरगोश को, लगाते छलांगे
तो फिर पूछा मैंने, क्यों क्या तुम भी जागे हो कल रात
नहीं आई नींद - क्यों की थी मन में सोच?
क्या लाएगी कल की सुबह
या भी था डर की होगी या न होगी
सुनहरी तकदीर और लाएगी भोर
करवट बदलने में भी ये थी झिझक
की कही डोलेगा इन्द्र का सिन्हासन
और आज ही की रात हो जायेगा सब भष्म
किसी तरह से काटी रात
दर-दर कर ली हर एक सांस
धुप की हर किरण से जगी उम्मीद
और आये हो देखने, बाहर भविष्य
क्यों किया व्यर्थ तुने ए दोस्त
वो स्वपन जो आनेठे कल रात
रह गए अधूरे कई ख्वाब
जाओ जाओ जी भर के जी लो ये पल
क्युकी बस यही तो जो, फिर लौट के नहीं आता
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