परछाई मेरी
चलती तो हो मेरे साथ साथ
क्यों नहीं बोलती कुछ
क्यों रहती हो चुप चाप
तुमसे करीब और कौन मुझसे
तुमसे दूर रहे कोई कैसे
गुम हो जाती हो लेकिन, अँधेरा घिरते ही
छोडती हो मुझको अकेली , जान के भी
की डर लगता है मुझको, हर अंधकार से
ख्याल आते है, बेकार न जाने कहाँ से
रौशनी की एक किरण से, उठ कड़ी होती हूँ
मेरी परछाई, मेरी सहेली, को जो पाती हूँ
कद तुम अपना भले बदलती रहेती हो
पर सच तो ये है, साथ सदा रहेती हो
चलती तो हो मेरे साथ साथ
क्यों नहीं बोलती कुछ
क्यों रहती हो चुप चाप
तुमसे करीब और कौन मुझसे
तुमसे दूर रहे कोई कैसे
गुम हो जाती हो लेकिन, अँधेरा घिरते ही
छोडती हो मुझको अकेली , जान के भी
की डर लगता है मुझको, हर अंधकार से
ख्याल आते है, बेकार न जाने कहाँ से
रौशनी की एक किरण से, उठ कड़ी होती हूँ
मेरी परछाई, मेरी सहेली, को जो पाती हूँ
कद तुम अपना भले बदलती रहेती हो
पर सच तो ये है, साथ सदा रहेती हो
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