है वक़्त कम
जज़्बात बिखरे हुए हैं
हो रही है घडी
एहसास बस में नहीं है
देर किस बात की?
और लज्दी भी कैसी?
सिमटे से दायरों में
फैली-फैली जिंदगी.
जज़्बात बिखरे हुए हैं
हो रही है घडी
एहसास बस में नहीं है
देर किस बात की?
और लज्दी भी कैसी?
सिमटे से दायरों में
फैली-फैली जिंदगी.
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