बड़ा ही मायूस आज ये मन है, हफ्ते भर से सोच मगन है
आखिर भूल हुयी है कौन सी, खुद पर अब संदेह हुआ है
सच तो है मासूम नहीं मैं, कभी स्वार्थ से कभी मोह से
कौन बचा है? बची नहीं मैं
लेकिन इतना भी मानो सच है, जिसको गले लगया है
बाते चाहे नहीं बनायीं, लेकिन जीवन-ह्रदय बसाया है
कोई चाहे कुछ भी कह दे,सुन लुंगी-दुहरा भी दूं
लेकिन जिसको दोस्त कहा था, उसको कैसे ठुकरा दूं?
शायद मैंने गलत सुना था , या फिर तुमने झूठ कहा?
गरिमा, मर्यादा रिश्तो की, रह गए नाहक शब्द भला?
गर वो सब था दिखलावा, तो फिर आखिर सच क्या है?
कोई मुझको बतलाये फिर इस रिश्तो का अर्थ क्या है?
बेमतलब सब कुछ अर्थहीन , बातो बातो पे अग्निपरीक्छा
कब तुम कैसी राह धरोगे, ये सब बस तुम्हारी इच्छा?
चोट लगी जब सहलाया
पुचकारा थोडा फुसलाया
और फिर अपनी राह पकड़ ली, ऐसी कैसी रिश्तेदारी?
है दम और बिस्वास जरा भी तो फिर दिखला सच्चाई
करो सामना, यही वक़्त है, लो अपनी अपनी जिम्मेदारी
आखिर भूल हुयी है कौन सी, खुद पर अब संदेह हुआ है
सच तो है मासूम नहीं मैं, कभी स्वार्थ से कभी मोह से
कौन बचा है? बची नहीं मैं
लेकिन इतना भी मानो सच है, जिसको गले लगया है
बाते चाहे नहीं बनायीं, लेकिन जीवन-ह्रदय बसाया है
कोई चाहे कुछ भी कह दे,सुन लुंगी-दुहरा भी दूं
लेकिन जिसको दोस्त कहा था, उसको कैसे ठुकरा दूं?
शायद मैंने गलत सुना था , या फिर तुमने झूठ कहा?
गरिमा, मर्यादा रिश्तो की, रह गए नाहक शब्द भला?
गर वो सब था दिखलावा, तो फिर आखिर सच क्या है?
कोई मुझको बतलाये फिर इस रिश्तो का अर्थ क्या है?
बेमतलब सब कुछ अर्थहीन , बातो बातो पे अग्निपरीक्छा
कब तुम कैसी राह धरोगे, ये सब बस तुम्हारी इच्छा?
चोट लगी जब सहलाया
पुचकारा थोडा फुसलाया
और फिर अपनी राह पकड़ ली, ऐसी कैसी रिश्तेदारी?
है दम और बिस्वास जरा भी तो फिर दिखला सच्चाई
करो सामना, यही वक़्त है, लो अपनी अपनी जिम्मेदारी
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