कैसे ख़तम होती है कहानी बस इतना जो पता होता तो फिर देखते तुम और जानती दुनिया मुझको और मेरी लेखनी को लेकिन क्या करूँ, की मुझे बस पता है की कैसे होती है शुरू , पर अंत विहीन कैसे लिखू जब नहीं जानती कैसे होगी ख़तम क्या तुम्हे पता है?
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पहनकर प्यार कलाई में, सजाकर प्यार माथे पर बदलकर हार गलो के विदा तुमने किया बहाकर गंगा आँखों से, रखकर ह्रदय पर हिमालय मुरझाया सा लेकर कमल-सा मन विदा तुमने किया खोलकर मन की सारी गाँठ, मिटाकर भ्रान्ति के एहसास बांधकर गठारी भर विश्वाश विदा तुमने किया पाने को ये सौगात, मिटाने दुनियाभर की थकान चखने प्रेम के असली स्वाद मैं वापस आऊंगी