बस दो बात समझ में आई है
और लगता है अब कुछ समझने को बाकी नहीं है
की गुज़र जाता है समय, जिसके पीछे हम भागते है
और रह जाती हैं बस यादे जिन्हें हम पूछते तक नहीं
मायूसियो के लम्हों में और जब हो तन्हाईयाँ
समय तो स्वार्थी बनकर बस यु ही चलता रहता है
यादे पुरानी , भली या बुरी हो
देती है ठंडक, बनकर पुरवाईयाँ
तो बस आज से मुझको नहीं भागना है
बेकार ही नहीं करनी कोशिश, बंधने की समय को
बस बुनने हैं ताने-बाने में ऐसी यादो को
जो रहे हर पल इस दिल के करीब, अपने बनकर



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