जरुरत
हो गए बहुत दिन,बहुत दिन हो गए भूल गयी लगभग खुशबु उस आँचल की याद नहीं अब थपकी सर को उन हाथो की स्वाद कैसा होता था, उन निवालो का जो गुजरती थी, मेरी माँ की उंगलियों से कैसी खनक थी , उन चूडियो की जो रसोई से चलकर, आँगन तक आती थी कैसी थी वो नजरे जो देखती ही नहीं कह देती थी सबकुछ , जो मन चाहता था चट्टानों सी जो यु तो सब कुछ झेल जाती थी एक खरोच पर मेरी, आंखे उसकी नम होती थी जानती हूँ आज , जब वो मुझसे होकर गुजरी है कहाँ हो तुम की आज फिर तुम्हारी जरुरत है