जो न होता वरदान मुझे, शब्दों की माला पिरोने का
कैसे भला याद रख पाती तुमको
की अक्स बस दीखता है तेरा, हरेक बार मुझको
जब भी उंगलियों ने मेरी, थामी कलम है

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