दिल जो हूँ तेरा , इसीलिए शायद ये जानता हूँ
कैसे शातिरे दिमाग पर तेरे , मैं भारी पड़ता हूँ
क्यों चाहकर भी राह सही तुम ले नहीं पाते
क्यों सुन के मेंरी भी मुझको खुश रख नहीं पाते
क्यों मैं पल पल रंग आखिर इतने बदलता हूँ
क्यों तेरा होकर भी औरो के लिए धड़कता हूँ
क्या करोगे, अब जो हूँ सो मैं हूँ, बस हो गया उसका
जबतक चलूँगा, तब तलक रहेगा दिल का ये रिश्ता
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