एक दर्शक मूक
भीड़ में जमाने कि, जिंदगी रुकती नही
थक जाते है पैर, आरजुये थमती नही
बदलते हैं चेहरे, बद्लते रिश्ते और बद्लते हालात
आज इसका तो कल उसका, बस फेर बद्ल की बात
मैं क्यू थामु, किसने थामा सदा किसी का हाथ
तू कर मन कि मैं नही देता, इसमे तेरा साथ
अन्दर बाहर , उलझन उलझन , क्या है सच क्या झूठ
तू जाने तो बतला जाना, मैं तो बस एक दर्शक मूक
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