सुलगते जज़्बातो को हमे हवा और नही देनी है
चलो जाओ भी तुमसे अब कोइ, बात नही करनी है
कोरा सा भोला भाला ये खाली पन्ने सा मन था
रन्ग अन्गिनत भरदिये , मुझे ्कर दिया भ्रमित सा
हर एक नये अल्फ़ाज़ से, अन्दाज से , उलझति मै जाती हू
अब एक लकीर नयी मुझे , इसपर नही खिचनी है
चलो जाओ भी तुमसे अब कोइ, बात नही करनी है
बहुत बार टाला, फ़ुसलाया दफ़ा लाखो
पर बेलगाम मन की, हिमाकत तो देखो
यु छुप छुप के तकिये भिगोने, ठन्ढि आह नही भरनी है
चलो जाओ भी तुमसे अब कोइ, बात नही करनी है

Comments

Unknown said…
Falling short of adjectives.....

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