हर रूप मे , हर वेश मे
हो आदि मे या शेष मे
अपने हृदय मे रुधिर मे
पलायन मे या स्थिर मे
रंग मे, बेरंग मे
तुम बिने, हुए बदरंग मे

इस अंग मे, उस अंग मे
मरती हुई, हर उमंग मे
वो बाँसुरी मे कृष्ण के
वो शिव के लिपटी भस्म के
अरमानो की इस राख मे
या हो उम्मीदो की साख मे

खिलती है गर कोई कली
तेरी गली, बस तेरी गली

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