Papa


आँखों में कहाँ नींद, जब लगी हो आग मन को
पैरो में क्या थकन ,जब चले हो अपने घर को
क्या मान क्या सम्मान, जब हो लुटती जान
दूरी तो महज एक संख्या , जब जुड़े हो प्राण
दिखता कहाँ गलत सही, कब वक़्त सोचने का
जब बात तुम्हारी है, मर्यादाओ को ताक रखा
न रखे उम्मीद कोई, की भूल हो गयी थी
भावनाओ में बहकर, थोड़ी बावली सी मैं थी
इस बार जो किया है, हर बार वो करुँगी
तुम्हारे लिए तो ढाल बन, तलवार से लड़ूंगी

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