उम्मीदों पे तुम्हारे हमेशा खरी मैं उतर पाऊँ
ऐसा भला कैसे हो पायेगा, इंसान हूँ
अपनी जगह ठीक हूँ, शायद कही गलत भी
वार कभी सीधे, पड़ जाते हैं पलट भी
माफ़ी की कोई जगह इसमें बचती नहीं है
उधार के प्यार से, रिश्तो की नीव टिकती नहीं है
जब जो चाहे देना , सर आँखों पर है हर करम
अगर घाव तूने दिए है, रखेगा भी मरहम
अगर सच था वो जो मेरे दिल ने पाया था
तो आओगे तुम, वर्ना समझूंगी भरम

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