मुझे अब खोने का डर नही है




मुझे अब खोने का डर नही है
सूखे ताले जब नयनो के, रोने का डर नही
जिस उम्मीद और ख़यालो से, बरसो महल बनाए
उन सपनो का अब ग़लती से सच, होने का डर नही है

क्या किस्मत और क्या होती हैं, हाथ की रेखाएँ
तुम हाथ जो बस बढाओ , हम मंज़िलो को पा जाएँ
पर ये हुआ नही, ना होगा कभी, तकदीर सदा से सोई
ऐसी किस्मत कब सो जाए, सोने का डर नही है

कदमी की आहटो पर, जहाँ साँसे रुकती और चलती थी
एक सहमी सी झलक पर ही, धड़कने तेज़ हो जाती थी
जब राह चुनी, इन हाथो से, मैने खुद रेगिस्तानो की
काँटे कोई और क्यू कर, बोने का डर नही है

मुझे अब खोने का डर नही है


Comments

Popular posts from this blog

मर्यादा

वट सावित्री

प्रेम है