बादल कब से चाँद की सुनने लगे?
जो कहने से तुम्हारे, वो बरस जाएँगे आज मुझपर
वो तो उड़ते रहते हैं, हैं अपनी मर्ज़ी के मलिक
घूमते हैं वो ठिठकते हैं तो बस पर्वत पर
मैं हू ही कौन, एक नादान चकोर
फैलाए आँखे देखती हूँ, बादल की बाहों मे तुमको छिपते
पर जानती हू, जाएँगे उड़ वो अगले तेज़ झोके से
रह जाओगे तुम, अनगिनत रातो मे शीतल नैनो से देखते
है सच तो ये की शीतल हूँ मैं
पर ह्रदय में ,ज्वालामुखी एक पलता है
उन काली घनघोर बाहों में
मेरा भी तो दम घुटता है
आज गुज़रे , अब ना आयें
हरपल यही मांगता हूँ
बहुत सारे जतन करके
अपने आपको रोकलेता हूँ
कही किसी पल दिन कही
ये धैर्य खोता सा जाता है
तब ये शीतल चाँद
दरिया में ज्वार लाता है
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