बाती से जलते हो क्यों दिसव राती
मेरे साथी
मेरे साथी
प्रेम की रौशनी से भरते हो मेरा जीवन
डब डब भर दिए क्यों अपने ही नैनो के
छिपाते हो हर सिकन, लौ में लहक लहक
कह जाते हो सब अपनी ऊष्मा में बिन बैनो के
मेरे साथी
मेरे साथी
"गोरे बदन पे, उंगली से मेरा , नाम अदा लिखना " - गुलज़ार किसने लिखा , किसने पढ़ा और किसने समझा? अब कौन माथापच्ची करे इसमें। हम तो बस श्रेया घोषाल के अंदाज पर कुर्बान हो लिए और यकीं भी कर लिया की "रातें बुझाने तुम आ गए हो". प्रेम - तलाश ख़त्म . आज बड़े दिन बाद, इस कड़ी में एक और जोड़ देने का मन हो चला है. क्यों? ऐसी कोई वजह नहीं है मेरे पास आज देने को. और आपको भी, आम खाने से मतलब होना चाहिए न की पेड़ गिनने से. पिछले साल की मई के बाद , नहीं लिख पायी थी कोई और कड़ी. जैसे जंजीरो से ही रिश्ता तोड़ लिया हो मैंने. लेकिन अब ऐसा लगता है, मेरे अनदेखे कर भी देने से ये जंजीरे मुझे अकेला नहीं छोड़ेंगी. और फिर ये ख्याल आया की इंसान जंजीरो में पड़े रहने को ही तो कही प्रेम नहीं कहता हैं? न, जंजीर खुद प्रेम नहीं होता पर हमारी तीब्र आकांक्षा किसी न किसी जंजीर में बंधे रहने की और बाँध लेने की, कई बार प्रेम कहलायी चली जाती है. हाँ, अब ये भी सच है की बिना प्रेम किसी को बाँध लेना, या बंध जाना संभव भी नहीं. लेकिन बस बंधे रहना भी तो प्रेम का हासिल नहीं। प्रेम, प्रतिष्ठा और प...
कभी रूह से और कभी देह से तुम बुला लेना और बता देना की प्रेम है कभी रूठकर और कभी बहल कर सता लेना और हंसा देना की प्रेम है कभी पास रहकर कभी दूर जा कर दिखा देना और देख लेना की प्रेम है हूँ जिन्दा की मुर्दा कौन कहे देखकर बस जान लेना की सांस है तो प्रेम है
गए होंगे मथुरा नगरपति गोकुल, किसी अंधियारी रात में सुनसान तट पर, खोजने किसी को किसने देखा और किसने जाना सबने सुने हैं राधा के प्रेम के किस्से पन्ने रंगे हैं , बनी अनगिनत तस्वीरे हुयी रासलीला, और नटखट प्रसंगे मगर बड़े इत्मिनान से, देकर दुहाई कर्मो की ताज पहन सर पर, छोड़ बंसरी व्रिज की चले गए थे तुम, मुड़कर देखा जो होगा किसने देखा और किसने जाना राधा बिचारी रही वही पर वही की बैठी भी डोली वो थी किसी और की राह हर पल तुम्हारी देखी तो होगी वचन भी लिया होगा, किसी भी मोड़ पर हाथ जो तुमने थामा, चल दूंगी सब छोड़ कर इन छोटी सी बातो में रखा ही क्या था तुम्हे थो बनानी थी महाभारत द्वारका तुम्हारी और रुक्मिणी तुम्हारी जब सब थे प्रभो, तुम्हारी इच्छा से क्या नहीं होती तुम्हारी कहानी बिना उसके विरह के हाँ, प्रेम कहते हो की तुम्हे भी था किसने देखा और किसने जाना
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