यु दिए जलाकर तुम मुझमे उम्मीदों के
दहलीज पर ऐसे एड़ियो से उड़ेल जाओगे
सोचा नहीं था पर था डर ये हरपल
आखिर मुझसे नाचीज़ को कब तक अपनाओगे
आग पकड़ ली है चौखटों ने घर की
पर मैं यहाँ से नहीं हिलने वाली
हो जाने दो भष्म मुझको , साथ सपनो के मेरे
तुम पलट कर कहाँ अब इधर आने वाली
बड़ी ढीठ हो तुम, है बड़ा गौरव तुमको
की जिद के आगे तुम्हारे, जग टेकता है घुटने
हो जाये अब शहीद इसमें इश्क़ भी हमारा
शब्द ही बस बचे हैं, जज़्बात के क्या कहने

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