ह्रदय में फांस
नैनो में निराशा
अधरों को शब्दों के
न होने की हताशा
पतझड़ के पत्तो सा यु
गिरता साख से इतराकर
पर सन्ता जा कीचड में
ये अभागा फिर जाकर
न सुनता किसी की
न पूछता किसी से
बदलते मौसमो का
बहाना बनाकर
कहाँ मेरे बस में
कहाँ तेरे बस में
ये किस्मत की डोरी
न तेरी ना मेरी
अनदेखे अनकहे कुछ
सच भी होते हैं
सीने को चीर बिछा के
कुछ हमसे भी , सोते हैं
करके कठोर इस मन को
भर आँखों में अंगारे
अनछुए जज्बात भी
आँखों से बहते हैं
तुम्हारा साथ नहीं मुझको
अब आस नहीं मुझको
तेरी यादो पे सर रख के
चलो जी भर के रोते है
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