क्यों कोई शरारत हम आज कर ले 

तुम नजरे झुका लो, तो बाहोंमें भर ले 

अदाओं की शोखी, नज़ाकत के नखरे

जो तुम मान जाओ, तो पलकों पे रख ले 

हैं बड़ी सरगोशियां , मदहोशियाँ हैं 

जानलेवा मुझे, तेरी खामोशियां हैं 

तुम जो एकबार शरमा के धीरे से हंस दो 

हर तीर हम नज़र के, हंस के सीने पे लेले 

कसम से हमारी ये फितरत नहीं है 

ये नहीं की तुम्हे भी मेरी चाहत नहीं है 

कैसे आज़ाद हो लु, रूह राहत नहीं है 

छूके तुझसे फना हो, जिंदगी के झमेले 

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