बिटिया


सारा दोष तुम्हारा था माँ
या फिर होगा पापा का 
नहीं सिखाई दुनियादारी
ज्ञान दिया बस सपनो का 
नहीं कहा थी जली वो रोटी
कहा झाड़ू सही लगा
हाथ में दी रंगो की कटोरी
आँगन मेरे रंग से रंगा 
कहाँ कहा कह झूठ तू बेटी
सच का जग में मोल नहीं 
जब तब कहते रहे ये मुझसे
तू तो है अनमोल मेरी 
नहीं सिखाया आंकू दुनिया
गहने जेवर और सोने से
भर आती थी आँख तुम्हारी
एक गुड़िया के रोने से 
क्यों रखा आँचल में बांधकर
हर एक धुप से छाया दी 
कटुता संदेह भेद भाव
दिल में भर भर माया दी 
अब जाकर के सिखा सब कुछ
जो सब पहले आना था 
देर हो गयी , घाव हो गए,
मेरा मन हर तीर का निशाना था 
झूठ कहा करते थे तुम
मेरी बातो से हिरे मोती झड़ते हैं 
मेरे शब्द तो मेरे ह्रदय में अब
बासी होकर सड़ते हैं 
कहते थे तुम, बिटिया मेरी
अद्भुत हो अनूठी हो
ऐसा क्यों है, फिर मेरी दुनिया
किस्मत मुझसे रूठी हो
बाँध के गठरी संस्कार की, देकर धन मुझे प्रेम का
तुमने मुझको विदा किया  सजा ज्ञान के गहने में 
कौड़ी का मौल भी नहीं था इसका, अब जाकर मुझको पता चला,
रहते थे तुम कौन से सपनो में 
चलो क्या कहु मौन रहूंगी, लेकिन आगे ऐसा हो 
बिटिया मेरी तेरा भविष्य, तेरी माँ के जैसा हो 

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